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________________ की छाया पड़ने से भी तुम अपने आपको अपवित्र समझ बैठते थे। एक दिन आपकी भेंट एक श्रावक से हो गई। उसने आपको समझाया कि 'धर्म का सम्बन्ध जाति या शरीर से नहीं बल्कि आत्मा से है । आत्मा शरीर से भिन्न है, ऊँच हो या नीच, मनुष्य हो या पशु, ब्राह्मण हो या चाण्डाल, आत्मिक उन्नति करने की शक्ति सब में एक समान है। जिससे प्रभावित होकर जाति-पांति विरोध त्याग कर आप श्रावक होगये और विश्वासपूर्वक जैनधर्म पालने के कारण मर कर स्वर्ग में देव हुए और वहां से आकर श्रोणिक जैसे महाप्रतापी सम्राट के भाग्यशाली राजकुमार हुए हो"। भ० महावीर के उत्तर से अभयकुमार के हृदय के कपाट खुल गये । यह विचार करते-करते "जब श्रावक धर्म के पालने से इस लोक में राज्य सुख और परलोक में स्वर्गों के भोग बिना मांगे आप से आप मिल जाते हैं तो मुनिधर्म के पालने से मोक्ष के अविनाशी सुखों की. प्राप्ति में क्या सन्देह हो सकता है ? प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या ? भ० महावीर स्वयं हमारे जैसे पृथ्वी पर चलने-फिरने वाले मनुष्य ही तो थे, जो मुनिधर्म धारण करके हमारे देखते ही देखते लगभग १२ वर्ष की तपस्या से अनन्तान्त दर्शन, ज्ञान, सुख और वीर्य के धारी परमात्मा होगये । मनुष्यजन्म बड़ा दुर्लभ है फिर मिले न मिले" वह भ० महावीर के निकट जैन साधु हो गये। . वारिषेण पर वीर प्रभाव Amongst the sons of Shrenika Bimbisara, Varisena is famous for his piety and endurance of austerities. He was ordained as a naked saint by Mahavira and attained Liberation. -Some Historical Jain Kings & Heroes P. 14. सम्राट श्रेणिक के पुत्र वारिषेण इतने पक्के ब्रती श्रावक थे कि तप का अभ्यास करने के लिये वह रात्रि के समय श्मशान भूमि में ३८६ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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