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________________ ग्रंथों से खोजा जा सकता है इस प्रकार जैन धर्म को खूब अच्छी तरह से परख कर उनका मिथ्यात्त नष्ट होकर महाराजा श्रेणिक बिम्बसार ऐसे पक्के सम्यग्दृष्टि जैनी होगये', कि स्वर्ग के देव भी उन के सम्यग्दर्शन की परीक्षा करने के लिये राजगृह आये और उसे पूरा पाकर उनकी बड़ी प्रशंसा की । यह भ० महावीर की भक्ति और श्रद्धा का ही फल है कि आने वाले उत्सर्पिणी युग में महाराजा श्रेणिक 'पद्मनाभ' नाम के प्रथम तीर्थकर होंगे । राजकुमार मेघकुमार पर वीर प्रभाव Megakumar, a son of Shrenaka was ordained a member of the order of Mahavira. -Mr. V S. Tank ; VOA. II. P. 68. वीर वाणी के मीठे रस को पीकर महाराजा श्रेणिक के पुत्र मेघकुमार भगवान् महावीर के निकट जैन साधु होगये, परन्तु राजसुखों के आनन्द भोगने वालों का चंचल हृदय एक दम कठोर तपस्या में कैसे लगे? पिछले भोगविलास की याद आने से वह घर जाने की आज्ञा मांगने के लिये भ० महावीर के निकट आया ? इस से पहले कि वह कुछ कहे, भ० महावीर की दिव्यध्वनि खिरी जिस में उसने सुना-"मेघकुमार तुम्हें याद नहीं कि अब से तीसरे भाव में तुम एक हाथी थे एक दिन तुम पानी पीने के लिये तालाब पर गये तो दलदल में फंस गये। तुम्हारे शत्रओं ने १. Shrenika Bimbisara was a Jain King: a, Smith's Early History of India, P. 45. b, Oxford Histary of India, P. 33, c, Dr. Ishwari Pd: Bharat ka Itihas Vol IP.64. d, Monthly SARASWATI, Allahabad (April) 1931) P.233. e, Modern Review (Oet. 1930) 438, VOA. Vol I ii-P.15. २.४. भ० महावीर (कामताप्रसाद) पृष्ठ १६२, १६५ । ३८४ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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