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________________ ने अज का अर्थ शक्ति रहित शाली तथा जौ और पर्वत ने छैला (बकरा) बतलाया । इस पर राजा ने कहा जैसे पर्वत कहे जैसे ही ठीक है । तब से यज्ञों में पशु होम होने की रीति प्रचलित हुई। _____ महाराजा श्रोणिक ने भगवान महावीर से अपने पिछले जन्म के हाल पूछे तो भगवान् की वाणी खिरी जिस में उस ने सुना"ऐ श्रेणिक ! अब से तीसरे भव में तुम एक बहुत पापी और मांसाहारी भील थे। मुनि महाराज ने तुम्हें मांस के त्याग का उपदेश दिया परन्तु तुम सहमत न हुए तो उन्होंने कहा कि तुम ऐसे मांस के त्याग की प्रतिज्ञा करलो कि जिसको तुमने न कभी खाया है और न आइन्दा खाने की इच्छा हो इस में कोई हर्ज न जान कर आपने कौवे के मांस-भक्षण का त्याग जीवन भर के लिए कर दिया। अचानक आप बीमार हो गए, हकीमों ने कौवे का मांस दवा के रूप में बताया, परन्तु आपने इंकार कर दिया कि मैंने एक जैन साधु से जीवन भर के लिये कौवे के मांस के त्याग का सङ्कल्प लिया हुया है । मर जाना मंजूर है मगर प्रतिज्ञा भङ्ग नहीं करूंगा । सब ने समझाया कि बीमारी में प्राणों की रक्षा के कारण दवाई के तौर पर थोड़ा सा खा लेने में कुछ हर्ज नहीं, परन्तु आप ने प्रतिक्षा को भंग करने से स्पष्ट इन्कार कर दिया। जिस के पुण्य-फल से मर कर स्वर्ग में देव हुए और वहां के सुख भोग कर भारत के इतने प्रतापी सम्राट हुये।" महाराः श्रेणिक ने एक देव के मुकुट में मेंढक का चिन्ह देखकर आश्चर्य से पूछा कि इस के मुकुट में मेंढक का चिन्ह क्यों है ? उत्तर में सुना-'हे राजन् ! यह नियम है कि जो मायाचारी करता है वह अवश्य पशुगति के दुःख भोगता है। तुम्हारे नगर राजगृह में नागदत्त नाम के एक सेठ थे, चंचल लक्ष्मी के लोभ में वे छल-कपट अधिक किया करते थे जिस के कारण मर कर अपने ही घर की बावड़ी में मेंढक होगये। उसी बावड़ी में से एक कमल ३८२] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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