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________________ में सुना-"रावण राक्षस व मांसाहारी न था बल्कि जिसने हिंसामयी यज्ञ करने का विचार भी किया तो युद्ध करके उसका मान भङ्ग कर दिया । हनुमान और सुग्रीव वास्तव में बानर न थे', बानर तो उनके वंश का नाम था। रामचन्द्र जी ने कभी हिरण का शिकार नहीं किया, वे तो अहिंसाधर्मी महापुरुष थे" । श्रेणिक ने फिर पूछा, कि सीता जी को किस पाप के कारण रामचन्द्र जी ने घर से निकाला, और किस पुण्य के कारण स्वर्ग के देवों ने उनकी सहायता की ? उत्तर में सुना, "सीता जी ने अपने पिछले जन्म में सुदर्शन नाम के एक जैन-मुनि की झूठी निन्दा की थी। जिसके कारण उसकी भी झूठी निन्दा हुई। बाद में अपनी भूल जान कर उन्होंने उन से क्षमा मांग ली थी जिसके पुण्य-फल से देवों ने सीता जी का अपवाद दूर कर के अग्नि कुण्ड जलमय बना दिया था। श्रेणिक ने फिर प्रश्न किया कि युधिष्ठिर भीम और अर्जुन ऐसे योद्धा और वीर किस पुण्य के प्रताप से हुये और द्रौपदी पर पांच पुरुषों की स्त्री होने का कलङ्क किस पाप के कारण लगा ? उत्तर में सुना - "चम्पापुर नगरी में सोमदेव नाम का एक बहुत गुणवान् ब्राह्मण था उसकी स्त्री का नाम सोमिला था उसके तीन पुत्र-सोमदत्त, समिण और सोमभूति थे। सोमिला के भाई १. क्या सुग्रीव और हनुमान जी आदि सचमुच बन्दर थे ? रामायण में इन को बानर कहा है । बानर का अर्थ है 'जो जङ्गली फलों को खाकर गुजारा करता हैं' ) रामायण में इनके सलूक और अमल के मुताल्लिक जो ब्यान मिलते हैं वह भी इस ख्याल के विरुद्ध जाते हैं कि वह बहाहुर लोग बन्दर थे, इस के बावजूद अगर इनको बन्दर भी मान लिया जावे तो रामायण एक पूरीदास्तान से ज्यादा महत्व नहीं रख सकती जिस में पञ्चतन्त्र नामी एक ग्रन्थ की तरह हैवानों को इन्सान की बातें और अमल करते दिखाया गया है। -डा० गोकलचन्द नारङ्गः दैनिक उर्दू मिलाप (१८ अक्तूबर १९५३) पृ० १४ . ३७६ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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