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________________ अज्ञानी इस सत्य की हँसी उड़ाते हैं कि एक ही वस्तु में दो विरुद्ध बातें कैसे ? किन्तु विचारपूर्वक देखा जाये तो संखिया से मर जाने वाले के लिए वह जहर है, दवाई के तौर पर खाकर अच्छा होने वाले रोगी के लिये अमृत है। इसलिये संखिये को केवल जहर या अमृत कह देना पूरा सत्य कैसे ? कोई पूछे, श्री लक्ष्मण जी महाराजा दशरथ के बड़े बेटे थे या छोटे ? श्री रामचन्द्र जी से वे छोटे थे और भरत जी से बड़े और दोनों की अपेक्षा से छोटे भी, बड़े भी! कुछ अन्धों ने यह जानने के लिये कि हाथी कैसा होता है, उसे टटोलना शुरू कर दिया। एक ने पांव टटोल कर कहा कि हाथी खम्बे जैसा ही है, दूसरे ने कान टटोल कर कहा कि नहीं, छाज गैसा ही है, तीसरे ने सूड टटोल कर कहा कि तुम दोनों नहीं समझे वह तो लाठी ही के समान है, चौथे ने कमर टटोल कर कहा कि तुम सब झूठ कहते हो हाथी तो तख्त के समान ही है। अपनी अपनी पपेक्षा में चारों को लड़ते देख कर सुनाखे ने समझाया कि इसमें झगड़ने की बात क्या है ? एक ही वस्तु के संबंध एक दूसरे के विरुद्ध कहते हुए भी अपनी २ अपेक्षा से तुम सब सच्चे हो, पांव की अपेक्षा से वह खम्बे के समान भी है, कानों की अपेक्षा से छाज के समान भी है, सूड की अपेक्षा से वह लाठी के समान भी है और कमर की अपेक्षा से तख्त के समान भी है । स्याद्वाद सिद्धान्त ने ही उनके झगड़े को समाप्त किया। ___ अंगूठे और अंगुलियों में तकरार हो गया । हर एक अपने २ को ही बड़ा कहता था । अंगूठा कहता था मैं ही बड़ा हूँ, रुक्के. तमस्सुक पर मेरी वजह से ही रुपया मिलता है, गवाही के समय भी मेरी ही पूछ है । अंगूठे के बराबर वाली उंगली ने कहा कि हकूमत तो मेरी है, मैं सब को रास्ता बताती हूँ, इशारा मेरे से ही [३५६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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