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________________ कि एण्डरसन नाम का एक अंग्रेज जयदेवपुर के जंगल में शिकार खेलने गया, वहाँ एक शेर को देख कर उनका हाथी डरा, उसने साहब को नीचे गिरा दिया । एण्डरसन ने शेर पर दो तीन गोलियां चलाई किन्तु निशाना चूक गया । अपने प्राणों की रक्षा के हेतु शेर ने साहब पर हमला कर दिया । साहब प्राण बचाने को भाग कर पास की एक झोंपड़ी में घुस गये । वहाँ एक दिगम्बर साधु विराजमान थे । शेर भी शिकारी का पीछा करते हुए वहां आया परन्तु दिगम्बर साधु को देख वह शान्त हो गया । शिकारीको कुछ न कह, वह थोड़ी देर वहाँ चुपचाप बैठकर वापस चला आया तो एण्डरसन ने जैन साधु से इस आश्चर्य का कारण पूछा तब नग्न मुनी ने कहा - " जिसके चित्त में हिंसा के विचार नहीं उसे शेर या सांप आदि कोई भी हानि नहीं पहुंचाता, जंगली जानवरों से तुम्हारे हिंसक भाव हैं इसलिये वे तुम्हारे ऊपर हमला करते हैं" । मुनिराज की इस अहिंसामई वाणी का इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उसी रोज से उस अंगरेज ने हमेशा के लिये शिकार खेलने का त्याग कर दिया और सदा के लिये शाकाहारी बन गया । चटागांव में एण्डरसन के इस परिवर्तन को लोगों ने प्रत्यक्ष देखा है । " एक अंग्रेज विद्वान् मिस्टर पाल्वृन्टन का कथन है कि महर्षि रमण तप में लीन थे । रात्रि में उन्होंने एक शेर देखा जो भक्तिपूर्वक रमण के पांव चूम रहा था व बिना कोई हानि पहुँचाये सुबह होने से पहले वहां से चला गया। एक दिन उन्होंने रमण महाराज के आश्रम में एक काला सांप फुंकारें मारता हुआ दिखाई पड़ा १-२. “One, who has no Hinsa, is never injured by tigers or sanakes, because you have feelings of Hinsa in your mind, you are attacked by wild animals." — Jain Saint :- Prabuddha Bharata (1934) P. I25-126. [ ३५७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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