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________________ तीन ज्ञान का धारी हूं । मेरी सर्वज्ञता हर समय मेरे निकट नहीं रहती । भगवान् महावीर की सर्वज्ञता अनन्त है', वे सोते, जागते, उठते, बैठते हर समय सर्वज्ञ हैं । 3 ब्राह्मणों के ग्रन्थों में भी महावीर स्वामी को सर्वज्ञ कहा है । आज कल के ऐतिहासिक विद्वान भी भगवान् महावीर को सर्वज्ञ स्वीकार करते हैं | केवलज्ञान की प्राप्ति एक ऐसी बड़ी और मुख्य घटना थी कि जिसका जनता पर प्रभाव हुए बिना नहीं रह सकता था * r कौन ऐसा है जो सर्वज्ञ भगवान् को साक्षात् अपने सन्मुख पाकर आनंद में मग्न न होजाय ६ । मनुष्य ही नहीं देवों के हृदय भी प्रसन्न होगये । श्रद्धा और भक्ति के कारण उनके दर्शन करने के लिए वे स्वर्गलोक से जृम्भकग्राम में दौड़े आये देवों और मनुष्यों ने उत्सव मनाया, ज्योतिषी देवों के इन्द्रने मानों त्यागधर्म का महत्व प्रकट करने के लिये ही महावीर स्वामी के समवशरण की ऐसी विशाल रचना १२. मज्झिमनिकाय, भा० १, पृ० २३८-४८२ । ३. (a) S. B. E. Series Vol II P. 270-287 and Vol. XX P 313. (b) Indian Antiquary. Vol. VIII. P. 313. ४. (a) डा० विमलचरण ला : भगवान् महावीर का आदर्श जीवन, पृ० ३३ । (b) डा० ताराचन्द : अहले हिन्द की मुख्तसर तारीख । (c) Dr. H. S. Bhattacharya : Jain Antiquary. XV. P. 14. (d) M. McKay : Mahavira Commemoration Vol. 1 P. 143. (e) Prof. Brahmappa : Voice of Ahinsa, Vol III. P. 4. (f) मुमेरुचन्द्र दिवाकर : जैन शासन पृ० ४२ - ५२ । ( g ) P. Joseph May ( Germany ): Mahavira's Adrash Jiwan P. 17. (b) Some Historical Jain Kings & Heroes (Delhi) P. 80. ५-६. संक्षिप्त जैन इतिहास, भा० २, खण्ड १, पृष्ठ ७६ | ७-८. श्री कामताप्रसाद : भगवान् महावीर पृ० ११० । ३३२ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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