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जिस तरह भट्टी में तपने से सोने का खोट नष्ट होजाता है, जिससे हजरत ईसामसीह से ५५७ वर्ष पहले वैशाख सुदि दशमी' के तीसरे प्रहर महावीर स्वामी केवल ज्ञान प्राप्त कर सर्वज्ञ होकर
आत्मा से परमात्मा होगये । अब वे संपूर्ण ज्ञान के धारी थे। तोनों लोक और तीनों काल के समस्त पदार्थ तथा उनकी अवस्थाएँ उनके ज्ञान में दर्पण के समान स्पष्ट झलकती थीं।
निस्संदेह 'केवलज्ञान' प्राप्त करना अथवा सर्वज्ञ होना मनुष्य जीवन में एक अनुपम और अद्वितीय घटना है । इस घटना के महत्व को साधारण बुद्धिवाले शायद न भी समझे, परन्तु ज्ञानी
और तत्वदर्शी इसके मूल्य को ठीक परख सकते हैं । ज्ञानके कारण ही मनुष्य और पशु में इतना अन्तर है और जिसने केवल ज्ञान प्राप्त कर लिया, इससे अनोखी और उत्तम बात मनुष्य जीवन में क्या हो सकती है ? यह अवश्य ही जैन धर्म की विशेषता है कि जिसने साधारण मनुष्य को परमात्मा पद प्राप्त करने की विधि
१-२. श्री पूज्यपाद जी : निर्वाण भक्ति श्लोक १०-११-१२ । 2. Mabavisa attained the highest Knowledge and intuition
called Kevala, which is infinite, supreme, unobstructed, unimpeded, complete, full, omniscients. all- seeing and all-knowing. -Amar Chand : Mahavira (J. Mission
____ Society Banglore) P 11. 8. Of'all Indian cults it was Jainism which had developed
a thorough Psychological Technique for the Spiritual development of the human being from manhood to God hood - Dr. Felix Valyi : Hindustan Times,
(Oct. 3. 1950) P. 10. ५. A Scientific Interpretation of Christianity P. 44-45.
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