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________________ समाचार मँगवाने को कहा तो इन्होंने उनकी पुत्री की ओर से वायसराय महोदय को ऐसा दर्द भरा पत्र लिखा कि उन्होंने भारत के हाई कमिश्नर लन्दन को उनके समाचार मालूम करने को लिखा, जिस पर हाई कमिश्नर का लन्दन से उत्तर श्राया, "हमने श्रीपालचन्द को अपने दफ्तर में बुलाया था वह बिल्कुल राजी खुशी है । हमने उन्हें आपके पास पत्र भेजने को भी कह दिया" । कुछ ही दिनों बाद लन्दन से उन्होंने केवल अपनी राजी खुशी का पत्र ही नहीं बल्कि ३००० के लगभग रुपये भी भेजे । ___ मामचन्द जी की माता ने जैन प्रेम वर्द्धिनी सभा से अपने पुत्र की शिक्षा तथा खान-पान और देखभाल का उचित प्रबन्ध करने को कहा तो इसके मन्त्री श्री दिगम्बरदास ने उन्हें जैन अनाथाश्रम दरिया गञ्ज देहली में भेज दिया, जिस पर वहाँ के जनरल मैनेजर श्री अजितप्रसाद जैन ने लिखा, "आपके द्वारा भेजा हुआ मामचन्द नाम का वालक आया और आपकी चिट्ठी और इकरारनामा लाया। इसको आश्रम में भर्ती कर लिया गया है। आप बालक की ओर से किसी प्रकार की चिन्ता न करें"। भ० महावीर के लिये तो आपके हृदय में अटूट भक्ति है । हर साल ही आप चन्दनपुर की यात्रा को जाते रहे हैं। एक बार आप वहाँ से वापिस आने को थे कि बा० गिरधरलाल एडवोकेट सहारनपुर और बा० मेहरचन्द ठेकेदार यमुनानगर भी वहाँ पहुँच गये और उन्होंने श्री दिगम्बरदास को एक दिन अधिक ठहरने पर रजामन्द कर लिया। वह अपना बँधा बिस्तर खोल कर लेटे ही थे कि कानों में यह ध्वनि पड़ो, “यहाँ भाव की क़दर है, ज्यादा ठहरने की नहीं। जब जाने का इरादा कर लिया तो अधिक ठहरने से क्या लाभ" ? इस पर आपने अधिक ठहरना उचित न Letter of July 21, 1944 from Shri Ajit Pershad, G. Manager, Jain Society for the Protection of Orphans, Darya Ganj, Delhi to B. Digamber Das Jain. [ ३६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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