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एक व्यापारी का काफला पड़ा था । चन्दनाजी ने उस व्यापारी से वैशाली का रास्ता पूछा। व्यापारी वैशाली के बहाने उनको अपने घर ले गया और उनके मनोहर रूप पर मोहित होकर उनसे विवाह कराने को कहा । चन्दना जी महाशीलवती थी वह कब किसी के बहकावे में आ सकती थी ? व्यापारी आसानी से अपना कार्य सिद्ध होता न देख कर जबरदस्ती करने लगा. चन्दना देवी ने उसे डाटा । व्यापारी ने कहा कि क्या तुम भूल रही हो कि यह मेरा मकान है, यहां तुम्हारी कौन सहायता करेगा ? चन्दनाजी ने चोट खाये हुए शेर के समान दहाड़ते हुए कहा कि जरा भी बुरी निगाह से देखा तो तुम्हारी दोनों आँखें निकाल लूगी । व्यापारी चन्दना जी पर जबरदस्ती करने को उठा ही था कि चन्दना जी के शीलव्रत के प्रभाव से एक भयानक देव प्रकट हुआ' । उसने व्यापारी की गर्दन पकड़ली और कहा, जालिम ! अकेली स्त्री पर इतना अत्याचार ? बता तुझे अब क्या दण्ड दू? व्यापारी देव के चरणों में गिर पड़ा और गिड़गिड़ाकर क्षमा मांगने लगा। देव ने कहा, "तूने हमारा कुछ नहीं बिगाड़ा तो हमसे क्षमा कैसी ? जिस शीलवन्ती को तू सता रहा था उसी से क्षमा माँग" ! व्यापारी चन्दना जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला, बहन ! मैं न पहिचान सका कि आप इतनी महान् शीलवती हो । मुझे क्षमा करो। मैं अभी आपको वैशाली छोड़ कर आता हूं । व्यापारी आखिर व्यापारी ही था, देव के भय से वह चन्दना जी को लेकर वैशाली की ओर तो चल दिया, परंतु रास्ते में विचार किया कि जब यह अनमोल रत्न मेरे हाथों से जा ही रहा है, तो बेचकर इसके दाम क्यों न उठाऊँ ? वैशाली के बजाय वह कौशाम्बी नाम के नगर में पहुंचा। उस समय दास-दासियों की अधिक खरीद-बेच होती
१. विस्तार के लिए श्री चन्दना चरित्र, देखिये ।
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