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________________ यहूदियों', आदि में भी इनका उल्लेख है । गांधीजी को नग्न स्वयं 3 प्रिय था । महाराजा भर्तृहरि जी नग्न होने की इच्छा रखते थे । स्वामी रामकृष्ण परमहंस के सम्बन्ध में लिखा है कि वे बालक के समान दिगम्बर हैं । ५ ७. अरति परीषह - वर्द्धमान महावीर इष्टवियोग और अनिष्ट संयोग को चारित्र मोहनीय का फल जान कर किसी से राग-द्वेष न रखते थे । ८. स्त्री परीषह - जहां किसी सुन्दर स्त्री को देख कर हमारे में विकार उत्पन्न होजाते हैं, परन्तु वीर स्वामी को स्वर्ग की महा सुन्दर देवाँगनाओं तक ने लुभाना चाहा, तो भी वे सुमेरु पर्वत के समान निश्चल रहे । सूरदास जी वीर थे जिन्होंने स्त्रियों को देखकर हृदय में चंचलता उत्पन्न होने के कारण अपनी दोनों आँखें नष्ट करलीं, परन्तु वीर वास्तव में महावीर थे कि जिन्होंने आँखें होने तथा अनेक निमित्त कारण मिलने पर भी मन में विकार तक न आने दिया । ६. चर्या परीषह — जहाँ हम चार कदम चलने के लिये सवारी ढूँढते हैं, वहाँ सोने की पालकी में चलने वाले और मखमलों के गद्दों में निवास करने वाले वर्द्धमान महावीर पथरीले और कांटोंदार मार्ग तक में तथा आग के समान तपती हुई पृथ्वी पर नंगे पाँव पैदल ही विहार करते थे । १ २. ३. ४. ५ यहूदियों में भी मैंराज का विश्वास करने वाले जो पहाड़ों पर आबाद हो गये थे लंगोटी तक त्याग कर बिलकुल नग्न रहते थे । -Ascention of Ishaih. P. 32. Lecky's History of European Monks. Chapter IV. जैन शासन (भारतीय ज्ञानपीठ काशी) पृ० १०० । महाराजा भर्तृहरि की दिगम्बर होने की भावना, खण्ड १ पृ० ७० | Reminiscences of Ramkrishna" Vol I. P 310. ३०८ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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