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________________ उन की निर्जरा के लिये २२ प्रकार की परियह बिना किसो भय, खेद तथा चिन्ता के सहन करते थे:१. भूख परीषह–एक दिन भी भोजन न मिले तो हम व्याकुल हो जाते हैं, परन्तु श्री वर्द्धमान महावीर ने बिना भोजन किये महीनों तक कठोर तप किया। आहार के निमित्त नगरी में गए, विधिपूर्वक शुद्ध आहार अन्तराय रहित न मिला तो बिना आहार किये वापस लौट आये और बिना किसी खेद के ध्यान में मग्न होगये । चार पांच रोज के बाद फिर आहार को उठे फिर भी विधि न मिलने पर बिना आहार वापस आकर फिर ध्यान में लीन होगये । इस प्रकार छः छः' महीने तक आहार न मिलने पर वे इस को अन्तरायकर्म का फल जान कर कोई शोक न करते थे। २. प्यास की परीषह-गर्मियों के दिन, सूरज की किरणों से तपते हुए पहाड़ों पर तप करने के कारण प्यास से मुह सूख रहा हो, तो भी मांगना नहीं, आहार कराने वाले ने आहार के साथ बिना माँगे शुद्ध जल दे दिया तो ग्रहण कर लिया वरन् वेदनीय कर्म का फल जान कर छः छः महीने तक पानी न मिलने पर भी कोई खेद न करते थे। ३. सदी की परीषह-भयानक सर्दी पड़ रही हो, हम अङ्गीठी जला कर, किवाड़ बन्द करके लिहाफ आदि अोढ़कर भी सर्दी-सर्दी पुकारते हों, पोह-माह की ऐसी अन्धेरी रात्रियों में नदियोंके किनारे ठण्डी हवा में वर्द्धमान महावीर नग्नशरीर तप में लीन रहते थे। और कड़ाके की सर्दी को वेदनीय कर्म का फल जान कर सरल स्वभाव से सहन करते थे। १. भगवान महावीर का आदर्श जीवन, पृ० ३३१ । ३०४ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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