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बाल-ब्रह्मचारी Lord Mahavisa did not marry -Prof. Dr. H. S. Bhattacharya: Lord Mahavira P 13.
वर्द्धमान कुमार की वीरता, रूप, गुण और सुन्दर युवावस्था देख कर अनेक राजा-महाराजा अपनी-अपनी कुमारियों का सम्बन्ध श्री वर्द्धमान जी से करने के लिये राजा पर जोर डालने लगे। माता त्रिशला देवी तो इस बाट में थी ही कि कब मेरा लाडला बेटा जवान हो और मैं विवाह करके अपने दिल के अरमान निकालू। उन्होंने कलिंग देश के महाराजा जितशत्र की राजकुमारी यशोदा को अनुपम सुन्दरी, महागुणों की खान और हर प्रकार से योग्य जानकर उससे कुमार वर्द्धमान का विवाह करना निश्चित् किया' । राजा सिद्धार्थ ने भी इस प्रस्ताव को सराहा । संसार की भयानक अवस्था को देखकर वर्तमान का हृदय ता पहले से ही वीतरागी था,वह कब काम वासना रूपी जाल में फँसना पसन्द करते ? जब माता जी ने इसकी स्वीकारतां मांगी तो कुमार वर्द्धमान जी मुस्करा दिये और बोले-"माता जी ! अधिक मोह के कारण आप ऐसा कह रही हो, संसार की ओर भी जरा देखो, कितना दुःखी है वह ?” रानी त्रिशला देवी ने कहा-'बेटा यह ठीक है, किन्तु तुम्हारी यह युवावस्था तो गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का है, यशोदा से विवाह करके पहले गृहस्थ धर्म का आदर्श उपस्थित करो, यह मी एक कर्तव्य है,
१. यशोदययां मुतया यशोदया पवित्रवत्या वीरविवाहमङ्गलम् ।
अनेककन्या परिवारयाऽऽरुहत्समीक्षितु तुङ्गमनोरथं तदा ॥ ८ ॥ स्मितेऽथनाथे तपसिस्वयंभुवि प्रजात कैवल्य विशाललोचने । जगद्विभूत्यै विहरत्यपि क्षिति-शितिं विहाय स्थितवांस्तपस्ययम् ॥ ६ ॥
--श्री जिनसेनाचार्यः हरिवंशपुराण
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