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________________ कानों में पड़ गया तो शीशा और लाख गर्म करके उनके कानों में ठूस दिया जाता था' । यदि किसी शूद्र ने बेदों का उच्चारण कर लिया तो उसकी जीभ काटली जाती थी, यदि किसी प्रकार धर्म का श्लोक याद कर लिया तो उनके शरीर के टुकड़े कर दिये जाते थे । छूत-छात इतने जोरों पर था कि शूद्रों के शरीर से छू जाने वाले और शूद्र से बात-चीत करने वाले मनुष्य तक को उस जन्म में महाभ्रष्ट शूद्र और मृत्यु के बाद कुत्ते को गति का अधिकारी माना जाता था । ऐसी भयानक स्थिति के समय भगवान महावीर का जन्म हुआ, भगवान महावीर स्वामी ने ही ऊँच-नीच की भावना का प्रभावशाली खण्डन कर शूद्रों तक के लिये स्वर्ग के द्वार खोल दिये। जातिगत भेद-भाव Caste or sex or place of birth, Can not alter human warth. Why let caste be so supreme,' 'T is but folloy's passing stream.- Lord Mahavira. अर्थात्-शूद्र को बुद्धि न दो और न यज्ञ का प्रसाद दो और उसे धर्म तथा व्रत का उपदेश न दो। १-३ "श्रवणे च युजतुभ्यां श्रोत्रपरिपूरणम् । उच्चारणे जिह्वाच्छेदो धारणे हृदयविदारणम् ।"-वैदिकवाङ्मय अर्थात्-शूद्र यदि वेदों का श्रवण करले तो उसके कान शीशे और लाख से भर देने चाहिएँ, उच्चारण करले तो उसकी जीभ काट देनी चाहिये और यदि याद करले तो उसका हृदय विदारण कर डालना चाहिये । ४. 'शूद्रान्नात् शुद्रसंपर्कात्. शद्रण सह भाषणात् । इह जन्मनि शद्रत्वं मृतः श्वा चाभिजायते ।।--स्मृतिग्रन्थ । अर्थात्--शद्र के अन्न से, छू जाने से और बात-चीत करने से भी मनुष्य इस जन्म में शद्र हो जाता है और वह मरने के बाद कुत्ता होता है। ५. पं० जुगलकिशोर : भगवान् महावीर और उनका समय । ६. जैन धर्म और शद्र खण्ड ३ । [ २५६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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