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________________ गये । पशुवलि धर्म का प्रधान लक्षण हो गया था' । धर्म के प्रमाणों की दुहाई देकर स्वार्थ और लोभ के वश ऐसे हिंसामयी यज्ञों को स्वर्ग का कारण बताकर अश्वमेध, गोमेध और नरमेध यज्ञ तक के विधान थे । रन्तिदेव नाम के राजा ने यज्ञ किया, उसमें इतने असंख्य पशुओं की हिंसा की गई कि नदी का जल खून के समान लाल रङ्ग का होगया था, जिसके कारण उस नदी का नाम चर्मवती प्रसिद्ध हो गया था । लोकमान्य बालगङ्गाधर तिलक के शब्दों में यह पुण्य जैन धर्म को ही प्राप्त है कि जिसके प्रभाव से ऐसे भयानक हिंसामयी यज्ञ बन्द हुए । यह भगवान महावीर का ही प्रभाव था कि जानदार पशुओं के स्थान पर यज्ञों में घी, धूप, चावल आदि शुद्ध सामग्री से १-२ या वेदविहिता हिंसा सा न हिंसेति निर्णयः । शस्त्रेण हन्यते यच्च पीड़ा जन्तुषु जायते ॥ ७० ॥ स एव धर्म एवास्ति लोके धर्मविदां वरः। वेदमंत्रर्विहन्यन्ते विना शस्त्रेण जन्तवः ॥ ७१ ॥-(स्कन्धपुराण) अर्थात्-"जिसका वेद में विधान किया गया है वह हिंसा हिंसा नहीं है बल्कि अहिंसा है शस्त्र के द्वारा मारने पर जीव को दुःख होता है इसी शस्त्र-वध का नाम पाप है । लेकिन शस्त्र के विना वेदमन्त्रों से जो जीव मारा जाता है वह लोक में धर्म बतलाया है।" ३. ज्ञानोदय भाग २ पृ० ६५५ । 8-4 In the ancient times innumerable animals were butchered in sacrifice. Its proof is in Meghdutta, but the credit of the disappearance of this terrible massacre from the Brabmapical religion goes to the share of Jainism.-Lok manya B. G. Tilk: A Public Holiday on Lord Mahavira's Birthday. P. 3. २५६ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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