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________________ विचारक होगा। (१२) सिंहासन देखने का फल यह है कि वह तीनों लोक के साम्राज्य का स्वामी होगा। (१३) देव विमान के देखने का फल यह है कि वह स्वर्ग से तुम्हारे गर्भ में आया है । (१४) नाग प्रासाद देखने का फल यह है कि वह जन्म से ही तीन ज्ञान का धारी होगा । (१५) रत्नराशि देखने का फल यह है कि वह महाश्रेष्ठ गुणों का स्वामी होगा। (१६) अग्नि देखने का फल यह है कि वह तप रूपी अग्नि से कर्मरूपी ईधन को भस्म करने वाला होगा।" स्वामी द्वारा इस प्रकार स्वप्न का फल जान कर रानी सन्तुष्ट होगई और मुस्कराती हुई राज महल को वापस चली गई। अपने अवधिज्ञान से तीर्थंकर महावीर के जीव को गर्भ में आया जान कर माता त्रिशला की सेवा के लिये स्वर्ग के इन्द्र ने महारूपवती और बुद्धिमती ५६ कुमारियां' स्वर्ग से भेज दीं। उनमें से कोई माता की सेज बिछाती थी, कोई सुन्दर वस्त्र और रत्नमय आभूषण पहनाती थी, कोई माता से पूछती थी कि जीव नीच किस कर्म से होता है ? माता उत्तर में कहती थी जो प्रतिज्ञा करके भङ्ग करदे । कोई पूछती थी गूगा क्यों होता है ? तो माता बताती थी कि जिसने पिछले जन्म में दूसरों की निन्दा और अपनी प्रशंसा की, वह इस जन्म में गूगा हुआ है। एक ने पूछा बहरा किस पाप कर्म से होता है ? माता जी ने बताया, जिन्होंने शक्ति होने पर भी ज़रूरतमन्दों की आवाज़ पर ध्यान न दिया हो, वे इस जन्म में बहरे हुए। एक ने पूछा लङ्गड़ा होना किस पाप कर्म का फल है ? माता ने उत्तर दिया कि जिन्होंने पिछले जन्म में पशुओं पर अधिक बोझ लादे और न चलने पर उन्हें मारे । एक ने पूछा टूडा होने का क्या कारण है ? माता ने १. इन ५६ कुमारियों के नाम देखने के लिये पण्याश्रव-कथाकोष पृ० २०७-२०८ । २४४ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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