________________
अहिंसा का पालन नहीं तो सुख शान्ति वहां ? इसी लिये तो मस का त्यागी न होने के कारण महात्मा बुद्ध की अहसा का उतना अधिक प्रकार साधारण पर नहीं पड़ सका, जितना कि मांसाहार के त्यागी माना गांधी का पड़ा है।
विश्वशान्ति की प्राप्ति के लिय श्री स्वामी समन्तभद्र ने अपने स्वयम्भू स्तोत्र में एक और उत्तभ बात बताई है:
स्वदोष शान्त्या विहताऽऽ मशान्तिः शान्ते विधाता शरणं गतानाम् । भूयाय कलेश भयोपशान्यै शान्तिजिनो मे भगवान् शरण्य: ॥ ८० ॥ भावार्थ-राग-द्वेप करने से क्रोध, मान, मावा, लोभ, चिन्ता, भय यादि कपानरूपी बांग्न की उत्पत्ति हो जाती है, जो जीव की स्वाभाविक सुख-शांति को जला देती है। जिन्होंने राग-द्वेष,मन,इंद्रियों को सम्पूर्ण रूप से जीतकर सच्ची नुख-शांति को प्राप्त कर लिया है, वे केवल जिनेन्द्र भगवान हैं । जो स्वयं किसी पदार्थ को प्राप्त कर लेते हैं वे ही उसकी प्राप्ति की विधि दूसरों को बता सकते हैं। इस लिये सच्चे सुख और शान्ति के अभिलापियों को श्री जिनेन्द्र भगवान के अनुभवों से लाभ उठाना उचित है।
इतिहास बताता है कि श्रीवर्द्धमान महावीर राग, द्वेप क्रोध.मान, माया, लोभ आदि १८ दोषों तथा मन और इन्द्रियों को सम्पूर्ण रूप से जीत कर ऋविनाशिक सुख-शान्ति प्राप्त करने वाले जिनेन्द्र भगवान हैं, जिन्होंने वर्षों के कठोर तप, अहिंसा व्रत-संयम द्वारा सत्य की खोज की, स्वयं राज्याधिकारी और उस समय के सरे राजात्रों-महाराजाओं पर अत्यधिक प्रभाव होते हुए भी उन्होंने युध का दवाव या राज-दण्ड का भय देकर अपने सिद्धान्तों को जनता पर थोपने का यत्न नहीं किया, बल्कि जब उन्होंने देखा कि जिह्वा के स्वाद के लिये लोग देवी देवताओं और धर्म के नाम पर जीव हिंसा करने में स्वर्ग की प्राप्ति तथा आनन्द मानते हैं तो उन्होंने जनता से कहा कि तुम जैन धर्म के सिद्धान्तों को इस
[२१
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com