SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नारी ऐसे दुर्गन्ध पति की सेवा से भी इनार न करती हो, जिसे दुर्गन्धा होने से उसके माता-पिता तकने निकाल दिया हा', जो नारी केवल अपने पति में ही सन्तुष्ट रहने का उच्च आदर्श रखती हो, जो नारी विषय भोगों पर विजय प्राप्त कर के जीवन भर ब्रह्मचारिणी रही हो, जो नारी रणभूमि तक में भी अपने पति की सहायता तलवार से करती रही हो, जो नारी युद्धभूमि में भी अपने पति का रथ बड़ी वीरता से चलाती रही हो, जो नारी पति के रणभूमि में पकड़े जाने पर शत्रुओं से उसे छुड़ाने की वीरता रखती हो, जी नारी छापाखाना न होने पर भी तीर्थंकरों के चारित्र्य हाथ से लिखवा कर हजारों की संख्या में मुफ्त बांटती हो", जो नारी अर्हन्त भगवान् की माने और रत्नमर्या डेडहजार मूर्तियां मन्दिरों में विराजमान कराती रही हो , जो नारी मन्दिर बनवाती रही हो , मन्दिरी की प्रतिष्ठा और उत्सव कराती रही हो'', जो नारी धर्म-प्रभावना में मनुष्य के समान हो', जो १-२ मैना सुन्दरी, विस्तार के लिये श्रीपाल चरित्र । ३. श्री ऋषभदेव जी की पुत्री सुन्दरी' । ४. जैन महिला दर्शन भा० २६ पृ० ३६२ । ५. महाराजा दशरथ की रानी के हई, विस्तार के लिो 'जैन धर्म वीरों का धर्म हैं' खण्ड ३। ६. 'जैन धर्म वीरों का धर्म है' खण्ड ३। ७-८. 'दक्षिणी भारत के राजा तैलर (९७३-६६७) के सेनापति मल्ला की पुत्री अतिमडब ने सोलहवे तीर्थकर शान्तिनाथ जी के जीवन चरित्र की एक हजार कापियां हाथ से लिखवाकर बांटी और डेढ़ हज़ार रत्नमयी, अन्त भगवान् की मूर्तियां बनवाई ' विस्तार के लिए 'ज्ञानोदय' भा० २ पृ० ७०६ देखिये। ६ 'नागदेव की पत्नी 'अत्तिम. ने जैन मन्दिर बनवाये' विस्तार के लिये जैन महिलादर्श भा० २६ पृ० ३६२ । १०-११ प्रो० बेनीप्रसाद: जैन सिद्धान्त भास्कर भा० ८ पृ० ६१ । १२८] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy