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जैन धर्म में स्त्रियों का स्थान
“Good mothers are the gems of the Society and real builders of the Nation."-Rev. Brahamchari Sital Pd. Ji'
आज का बच्चा कल का बाप है, हर देश और समाज की उन्नति और अवनति का दारोमदार उसके होनहार बच्चों पर होता है । बालकों की उत्पत्ति और उनके आचरण की नींव बचपन से ही माता द्वारा पड़ती है, इसलिये एक अच्छी माता के लिये नीरोग, वीर, सरलस्वभाव, ज्ञानवती
और ऊँचे आदर्शवाली होना जरूरी है, ताकि उसके उत्तम गुणों का सुन्दर प्रभाव उसके बालकों पर पड़ सके । हिन्दु धर्म में तो स्त्री की श्रीमती अंगूरमाला जैन महिमा इतनी बढ़ी चढ़ी है, कि महापुरुषों और अवतारों से पहले उनको स्त्रियों के नाम भजे जाते हैं। जैसे-राधा-कृष्ण, राधे-श्याम, गौरी-शङ्कर, सीता-राम ।
जैन संस्कृति में तो नारी का स्थान बहुत ही ऊँचा है, जिस
१. Jainism-A key of True Happinss (Published by Mahavira
Atisha Comittee) P. 120. २. "Child of today is father of tomarrow." ३. (a) Prof Satkasi Muker ji, Status of Women in Jain
Religion. (b) Dr. Saletar's Mediaeval Jainism, Chapter. V.
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