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________________ परमहंस हैं। इनमें बनावट नहीं थी, कमजोरियों और ऐबों को छुपाने के लिये इनको किसी पोशाक की जरूरत नहीं हुई। इन्होंने तप, जप और योग का साधन करके अपने आप को मुकम्मल बना लिया था। तुम कहते हो ये नंगे रहते थे, इसमें ऐब क्या ? परमअन्तर्निष्ठ, परमज्ञानी और कुदरत के सच्चे पुत्र को पोशाक की जरूरत कब थी ? 'सरमद' नाम का एक मुसलमान फकीर देहली की गलियों में घूम रहा था औरंगजेब बादशाह ने देखा तो उसको पहनने के लिये कपड़े भेजे । फकीर वली था कहकहा मार कर हँसा और बादशाह की भेजी हुई पोशाक को वापिस कर दिया और कहला भेजा : आँकस कि तुरा कुलाह सुल्तानी दाद । मारा हम ओ अस्बाब परेशानी दाद ।। पोशानीद लबास हरकरा ऐबे दीद । बे ऐबा रा लववास अयानी दाद ।। यह लाख रुपये का कलाम है, फकीरों की नग्नता को देख कर तुम क्यों नाक भी सुकेड़ते हो ? इनके भाव को नहीं देखते । इस में ऐब की क्या बात है ? तुम्हारे लिये ऐब हो इन के लिये तो तारीफ की बात है। १. नग्नता की शिक्षा केवल जैन धर्म में ही नहीं बल्कि हिन्दुओं, सिक्खों, मुसलमानों आदि के साधुओं, दरबेशों में भी है। तफसील '२२ परीषह जय' खंड २ में देखिये। २. जिसने तुमको बादशाही ताज दिया, उसी ने हमको परेशानी का सामान दिया । जिस किसी में कोई ऐब पाया, उसको लिबास पहिनाया और जिन में ऐब न पाये उनको नंगेपन का लिवास दिया। ३. लेखक के पूरे लेख को जानने के लिए जैन धर्म का महत्व (सूरत) भाग १ पृ.१-१४ । १०४ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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