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प्रश्नोत्तरचत्वारिंशत् शतक प्रायश्चित कह्या छइ, तद्यथा-"सामाइय तिगुणमट्टगहणं च" एहवा भाज्यना पाठ थकी टीकाकारई श्रीमलयगिरिइं (पत्र ५८) "त्रीन् वारान् सामायिकमुच्चारयति त्रिकृत्वः सामायिकमुच्चारयति" एहवा वाक्योथी यतिनइ दीक्षा देता त्रिण्हि वार सामायिक दंडकनउ उच्चार कराविवउ फलायउ छइ, तेह भणी यतिनी परई श्रावकनइ पुणि ३ वार सामायिक व्रत उच्चार करिवउ, वली श्रीव्यवहार भाष्य ( उ. ४ पत्र ५८) मांहि टीकाकारइ इम लिख्युं छइ "अपत्ते अकहित्ता, अणहिगय अपरिच्छ अतिकमे पासे । एक्केक्के चउगुरुया" इति व्यवहार भाष्यं, (गाथा ३११ ) व्याख्या-“ 'से' तस्य उपस्थापयितोऽतिक्रमे एकैकस्य व्रतस्य वारत्रय-मनुच्चारणे xxx प्रायश्चित्तं चत्वारो गुरूकाः" ४ उद्देशकेयतनइ व्रतोच्चार करावतां एक एक व्रत जूजूआ ३ वार जइ गुरु न उचरावइ तउ गुरुनइ चतुर्गुरु प्रायश्चित्त श्रावइ, तउ श्रावकनइ पुणि सामायिक नवमा वत उचरावतां ३ वार कांइ न उचरावीयइ ? जे भणि व्रतोच्चार सहुनइ सरीखं जांणी श्रावकनई ३ वार व्रतोच्चार करिवुज छइ, वली जिहां सामान्यइ सामायिकनउ उच्चार काउं छइ, तिहाई सामायिक ३ फलाया छइ, जिम श्रीओघनियुक्तिमांहि “सामायइ उभयकाय पडिलेहा" एहवा पाठनी व्याख्या मांहि “सामायइत्ति सामायिक वारत्रयमाकृष्य स्वपिति" इम वखाण्या छड राईसंथारानइ
अधिकारि, वली राइसंथारानइजि अधिकारि “सामायिकShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com