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प्रश्नोत्तरचत्वारिंशत् शतक मयसूय गाइसु निज्जूहा” इत्यादि व्यवहार भाष्ये । व्याख्या"जातस्तकं नाम जन्मानन्तरं दशाहानि यावत् , मृतसूनकमृतानन्तरं द शाहानि यावत ।" इति व्यवहारवृत्तौ । + 'सन्निरद्धे से गामे' इति श्रीपथमांगे । “ पडिकुटुं कुलं न पविसे” इति श्री दशवकालिके । निशीथभाष्य-निशीथचूर्णि x प्रमुख सर्वमान्य ग्रंथांमांहि जन्मसूतकगृह ११ दिन अपवित्र थाइ, तउ तीर्थकरनी प्रतिमा केम पूजाइ ? सिद्धार्थ राजानइ अधिकारि पुष्प गंध धूप नैवेद्यादि अग्रपूजा संभावीयई, जइ तेहनइ घरइ लोक न जिमइ, यति न विहरइ, ते घर अशुचि थाइ, तउ तीयइ घरनइ पाणीयइ श्रीजिनप्रतिमानी अंगपूजां कहउ किम थाइ ? ढोवणा प्रमुख अग्रपूजा थाइ, पुरिण जिम जन्मनइ सूअइ गुल सोपारी नालेर प्रमुख तेहनइ घरइना लांहणां लोक लियाजि करइ, तिम ढोवणादि पूजा घटइ, हिवणाई जन्मना घर थकी देहरइ घी नालेर सोपारी भाखोत्रीथाल प्रमुख, जेहमांहि तेहना घरनउ पाणी न पडइ ते आणी ढोइयइ, यति पिण कारणविशेषई जन्म सूतकनइ घरना + लौकिकं द्विधा-इत्वरं यावत्कथिकं च, तत्त्वरं यत्सूतकं मृतकादि, (तद्दशदिवसान यावद्वज्यते इति, यावत्कर्थिक वरूड-छिपकचर्मकारडुम्बादि, एते हि यावज्जीवं शिष्टैः सम्भोगादिना वय॑न्ते इति"
( व्यवहार भा. टी. 8. १ पत्र 10) ___x “लोइओ दुविहो-इत्तरियो आवकहिओ य, इत्तरिओ सूयगादिसु दसा(इ)दिवसपरिवज्जणं, आवकहिओ अहा-नट्टःवरुड़छिपग-चम्मार-डंबा य । (निशाय यूमि परिक्षा निक्षेपाधिारे) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com