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________________ आगम (४०) [भाग-३०] "आवश्यक"- मूलसूत्र-१/३ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययन [४], मूलं [.] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२७१...] भाष्यं [२०४...], प्रतिक्रमणा. क्रि प्रत सूत्रांक आवश्यक- सा दुविहा-जीवसामंतोवणिवाइया य अजीवसामंतोवणिवाइया य, जीवसामंतोवणिवाइया जहा-एगस्स संडो तं जणो हारिभ- जहा जहा पलोपद पसंसइ य तहा तहा सो हरिसं गच्छइ, अजीवेवि रहकम्माई, अहवा सामंतोवणिवाइया दुविहा- द्रीया देससामंतोवणिवाइया य सबसामंतोवणिवाइया य, देससामंतोवणिवाइया प्रेक्षकान् प्रति यत्रैकदेशेनाऽऽगमो भवत्यसं-12 यतानां सा देससामंतोवणिवाइया, सवसामंतोषणिवाइया य यत्र सर्वतः समन्तात् प्रेक्षकाणामागमो भवति सा सवसा8 मतोवणिवाइया, अहवा समन्तादनुपतन्ति प्रमत्तसंजयाणं अन्नपाणं प्रति अवंगुरिते संपातिमा सत्ता विणस्संति ८, नेसस्थिया किरिया दुविहा-जीवनेसत्थिया अजीवनेसस्थिया य, जीवनेसत्थिया रायाइसंदेसाउ जहा उदगस्स जंतादीहिं, अजीवनेसस्थिया जहा पहाणकंडाईण गोफणधणुहमाइहिं निसिरह, अहवा नेसत्थिया जीवे जीवं निसिरइ पुतं सीसं वा, अजीचे सूत्रव्यपेतं निसिरह वखं पात्रं षा, सृज विसर्ग इति १०,साहथिया किरिया दुविहा-जीवसाहस्थिया अजीवसाहस्थिया ॥६१३॥ N दीप अनुक्रम [२२] ॥६१३॥ सा द्विविधा-जीवसामन्तोपनिपातिकी चाजीवसामन्तोपनिपातिकी च, जीवसामन्तोपनिपातिकी यथा एकस पारस्तं जनो यथा यथा प्रलोकते प्रशंसति च तथा तथा सहर्ष गढ़ति, अजीवामपि स्थकमादीनि, अथवा सामन्तोपनिपातिकी द्विविधा-देशसामन्तोपनिपातिकी च सर्वसामन्तोपनिपातिकी च, देशसामन्तोपनिपातकी-सा देशसामन्तोप निपातिकी, सर्वसामन्तोपनिपातिकी च-सा सर्वसामन्तोपनिपासिकी, अथवा प्रमत्त संयतामामपार्न प्रतिमना-IN |दिते संपातिमाः सवा विनश्यन्ति, नैःशखिकी क्रिया द्विविधा-जीवनैःशामिकी अजीचनैःशासिकी च, जीवनःशासिकी यथा राजादिसंदेषात् यथा यत्रादिभि|रुदकस्य, मजीयनैयानिकी यथा पाषाणकाण्डादीनि गोफण धनुरादि मिनिस्ज्यन्ते, अथवा नैवानिकी जीवे जी निसूजति पुर्व शिष्यं चा, भजीये निस-1 जति, स्वास्तिकी क्रिया द्विविधा-जीववाहसिकी बशीवस्वास्तिकीच. पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यक मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचिता वृत्ति: ~363
SR No.035030
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 30 Aavashyak Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages464
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size96 MB
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