________________
आगम
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२२], -------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं [-], -------------- मूलं [२८२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रज्ञापनाया:मल
प्रत
यवृत्ती.
सूत्रांक
૪૪૪
[२८२]
कति गं भंते ! आतोजितातो किरियाओ पण्ण तातो?, गो! पंच आओजियाओ किरियाओ पण्णताओ, तं०-काइया २क्रियाजाव पाणातिवातकिरिया, एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं, जस्स णं भंते ! जीवस्स काइया आतोजिया किरिया अस्थि पदे क्रियातस्स अधिगरणिया किरिया आतोजिता अस्थि जरस अधिगरणिया आतोजिता किरिया अस्थि तस्स काइया आतो
संवेधः सू. जिया किरिया अस्थि , एवं एतेणं अभिलावेणं ते चेव चत्तारि दंडगा भाणितबा, जरस समयं देसं जं जाव वेमा- २८२ णियाणं । जीवे णं भंते ! समयं काइयाए अधिगरणियाए पादोसियाते किरियाए पुढे तंसमयं पारियावणियाते पुढे पाणातिवातकिरियाते पुढे,गोअस्थगतिते जीवे एगतियाओ जीवाओ समयं काइयाए अधिगरणियाए पाओसियाए किरियाए पुढे तं समय पारियावणियाए किरियाए पुढे पाणाइवायकिरियाए पुढे १ अत्यंगतिते जीवे एगतियाओ जीवाओं
समय काइयाए अधिगरणियाए पादोसियाते किरियाए पुढे तं समयं पारितावणियाए किरियाए पुढे पाणाइवायकिरियाए अपुढे २ अत्थेगइए जीवे एगइयाओ जीवाओ जैसमयं काइयाए अहिंगरणियाए पाओसियाए पुढे समयं पारि० किरि० अपुढे पाणाइवायकि० अपुढे ३ (मत्र २८२)
'कइणं भंते ! किरियाओ पण्णत्ताओ' इत्यादि प्राग्वत्, एता एव क्रियाः चतुर्विशतिदण्डकक्रमेण चिन्तयति-'नेरइया णं भंते !' इत्यादि पाठसिद्धं, सम्प्रत्यासामेव क्रियाणामेकजीवाश्रयेण परस्परमविनाभावित्वं चिन्त-शा यति-'जस्स णं भंते !' इत्यादि, इह कायिकी क्रिया औदारिकादिक्रियाश्रिता प्राणातिपातनिवर्तनसमा प्रति-विशिष्ट परिगृह्यते न या काचन कार्मणकायाश्रिता वा, तत आद्यानां तिसृणां क्रियाणां परस्परं नियम्यनिया
यसररररर
दीप अनुक्रम [५२९]
॥४४४॥
~492~