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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२१], -------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं [-], -------------- मूलं [२७३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२७३] विगाहना देशोना-किञ्चिदूना रनिः-हस्तः तथाविधप्रयत्नभावतः प्रारम्भसमयेऽपि तस्या एतावत्या एव भावात् ।। तदेवमुक्तान्याहारकशरीरस्य विधिसंस्थानावगाहनामानानि, सम्प्रति तैजसस्य तान्यभिधित्सुराहतेयगसरीरेण भंते ! कतिविधे पं०१, गो०! पंचविहे पं०, तं०-एगिदियतेयगसरीरे जाव पंचिंदियतेयगसरीरे, एगिदियतेयगसरीरेणं भंते ! कइविधे पं०१, गोल! पंचविधे पं०, तं-पुढविकाइय० जाव वणस्सइकाइयएगिदि- 16 यसरीरे, एवं जहा ओरालियसरीरस्स भेदो भणितो तहा तेयगस्सवि जाव चउरिदियाणं । पंचिंदियतेयगसरीरेण भंते ! कतिविधे पं०१, गो० चउबिहे पं०,०-नेरइयतेयगसरीरे जाव देवतेयगसरीरे, नेरइयाणं दुगतो भेदो भाणितबो, जहा घेउवियसरीरे । पंचिंदियतिरिक्ख जोणियाणं मसाण य जहा ओरालियसरीरे भेदो भाणितो तहा भाषियो । देवाणं जहा बेउवियसरीरभेदो भाणितो तहा भाणियबो, जाव सबसिद्धदेवत्ति । तेयगसरीरे णं भते ! किंसंठिए पं० १, गो! णाणासंठाणसंठिए पं०, एगिदियते यगसरीरेण भंते ! किंसंठिए पण्णते, गोणाणासंठाणसंठिए पं०, पुढ-. विकाइयएगिदियतयगसरीरेणं भंते । किंसंठिए पं०१, गो०! मसूरचंदसंठाणसंठिते पं०, एवं ओरालियसंठाणाणुसारेण माणितचं जाव चउरिदियाणवि, नेरइयाणं भंते ! तेयगसरीरे किंसंठिए पं०१, गो०! जह बेउबियसरीरे, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं मणूसाणं जहा एतेसिं चेव ओरालियन्ति, देवाणं भंते ! किंसंठिते तेयगसरीरे ५०, गो.! जहा देउवियस्स जाब अणुत्तरोववाइयत्ति । (सूत्र २७४)। जीवस्स गं भंते ! मारणंतियसमुग्धाएणं समोहवस्स तेयासरीरस्स PREMEERecedesisesels दीप अनुक्रम [५१९] SARERaininternational HTRataram.org | अथ तैजस शरीर-संस्थान-अवगाहना सम्बन्धी वक्तव्यता ~455~
SR No.035019
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 19 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size109 MB
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