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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१७], ------------- उद्देशक: [४], ------------- दारं -1, ------------- मूलं [२२५] + गाथा पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२२५] १७लेश्यापदे उद्देशः गाथा प्रज्ञापना- तु लेण्याद्रव्याणि आभवक्षयमवस्थितानि यत्तदन्यलेश्याद्रव्यसंपर्कत आकारमात्रं तदत्रैव वक्ष्यते । तत उक्तः परि- याः मल-Nणामलक्षणाधिकारः, अधुना वर्णाधिकारमभिधित्सुराहयवृत्ती. कण्हलेसा ण मंते ! वन्नेणं केरिसिया पन्नत्ता ?, गो०! से जहा नामए जीमूते इ वा अंजणे इ वा खंजणे इ वा कजले ॥३६॥ इ वा गवले इ वा मवलए इ वा जंबूफले इ वा अद्दारिटपुष्फेड वा परपुढेइ वा भमरेइ वा भमरावली इ वा गयकलमे इ वा किण्हकेसरे इ वा आगासथिग्गले इ वा किण्हासोए इ वा कण्हकणवीरए इ वा कण्हर्बधुजीवए इवा, भवे एतारूवे, गो! णो इणहे समहे, कण्हलेस्सा ण इत्तो अणियरिया चेव अकंतयरिया चेव अप्पियतरिया चेव अमणुन्नतरिया चेव अमणामतरिया चेव वनेण पन्नत्ता, नीललेस्सा णं भंते ! केरसिया बनेणं पन्नत्ता, गोयमा! से जहा नामए भिंगर इ वा भिंगपत्ते इ वा चासे इ वा चासपिच्छए इ वा सुए इ वा सुयपिछे इ वा सामा इ वा वणराइ इ वा उच्चतए इ वा पारेक्यगीवा इ वा मोरगीवा इ वा हलहरबसणे इ वा अयसिकुसुमे इ वा वणकुसुमे इ वा अंजणकेसिया [इ वा कुसुमे इवा नीलुप्पले इ वा नीलासोए इ वा नीलकणवीरए इ वा नीलबंधुजीवे इ वा, भवेयारूवे, गोयमा! णो इणढे समडे, एत्तो जाब अमणामयरिया चेव बनेणं पन्नत्ता, काउलेस्सा ण मं! केरिसिया बनेणं पत्रता , गोयमा से जहानामए खदिरसारए दवा कइरसारए इ वा धमाससारे इ वा तंबे इ वा तंबकरोडे इ वा तेवच्छिवाडियाए इ वा बाइंगणिकुसुमे इ वा कोइलच्छदकुमुमे इ वा जवासाकुसुमे इ वा, भवेयारूवे, गोयमा! णो इणढे समढे, काउलेस्सा दीप अनुक्रम [४६२-४६३] ॥३६॥ अथ लेश्याया: वर्ण-परिणामं वर्ण्यते ~324~
SR No.035019
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 19 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size109 MB
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