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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१६], -------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं [-], -------------- मूलं [२०५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: १६प्रवी प्रत सूत्रांक [२०५] गपदं प्रज्ञापनायाः मलयवृत्ती. occess ॥३२६॥ दीप अनुक्रम [४४१] Saeedererest अणेगविहा पं०, ०-जंबुद्दीवे दीवे भरहेरययवासे सपक्खंसपडिदिसि सिद्धखेतोववायगती, जंबुद्दीवे दीवे नुल्ल हिमवंतसिहरिवासहरपवतसपक्खंसपडिदिसि सिद्धखेत्तोषवायगती, जंबुद्दीवे दीवे हेमवतहेरणवाससपक्खंसपडिदिसि सिद्धखेचोववायगती, जंबुद्दीवे दीवे सद्दावइवियडावइबट्टवेयड्नुसपक्खसपडिदिसि सिद्धखेचोववायगती जंबुद्दीवे दीवे महाहिमवंतरुप्पिवासहरपातसपक्खंसपडिदिसिं सिद्धखेतो. जंबुद्दीवे दीवे हरिवासरम्मगवाससपक्खिसपडिदिसि सिद्धखे जंबुद्दीव दीवे गंधावातिमालवंतपवयवटवेयड्डसपक्खंसपडिदिसं सिद्ध० जंबुद्दीवे दीवे णिसहणीलवंतवासहरपवतसपक्खिसपडिदिसि सिद्धखे० जंबुद्दीवे दीवे पुत्वविदेहावरविदेहसपक्खिसपडिदिसि सिद्धखे० जंबुद्दीवे दीवे देवकुरुउत्तरकुरुसपक्खिसपडिदिसि सिद्ध जंबुद्दीवे दीवे मंदरपवयस्स सपक्खिसपडिदिसि सिद्धखे लवणे समुद्दे सपक्खि सपडिदिसि सिद्ध धायइसंडे दीवे पुरथिमद्धपच्छिमद्धमंदरपवतसपक्खिसपडिदिसि सिद्धखित्तो कालोयसमुद्दसपक्खिसपडिदिसि सिद्ध पुक्खरखरदीवद्धपुरथिमद्धभरहेरवयवाससपक्खिसपडिदिसि सिद्ध एवं जाव पुक्खरवरदीपद्धपच्छिममंदरपत्तसपक्खिसपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती, से तं सिद्धखेतोववायगती ५, से किं तं भयोववायगती, २ चउबिहा ५०, तं०-नेरहय० जाव देवभवोववायगती, से किं तं नेरइयभवोववायगती,२ सत्तविहा पं०, तं, एवं सिद्धवजो भेदो भाणितवो जो चेव खेतोषवायगतीए सो चेव, से तं देवभवोववायगती, से तं भवोपवायगती, से कि तं नोभवोववायगती, २ दुविहा पं०,०-पोग्गलणोभवीयवायगती सिद्धनोभवोचवायगती, से किं तं पोग्गलनोभवोषवायगती,२ जण्णं परमाणुपोग्गले लोगस्स पुरथिमिल्लाओ चरमंताओ पचस्थिमिल्लं चरमंतं एगसमएणं गच्छति पचत्थि C. S ॥३२६॥ ~256~
SR No.035019
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 19 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size109 MB
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