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आगम
(१५)
प्रत
सूत्रांक
[१२९
-१३७]
गाथा:
दीप
अनुक्रम [ ३३४
-३४४]
“प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र - ४ ( मूलं + वृत्तिः )
दारं [५],
• मूलं [ १२९- १३७] + गाथा:
पदं [६], ------------ उद्देशक: [ - ], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र -[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्तिः
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उप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणि एहिंतोऽवि उववअंति, जइ समुच्छिमधउप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए हिंतो उववअंति किं पतगसंमुच्छिमचउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उबवजंति अपजत्तगचउप्पयथलयर संमुच्छिमपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उवबअंति ?, गोयमा ! पत्तसमुच्छिमचउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोगिए हिंतो उवचजंति नो अपजस संमुच्छिम च उप्पयथलय रपंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उपयअंति, जइ गम्भवकंतियचउप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उबवअंति किं संखेजवासाउअगन्भवकं तियच उप्पयथ लयरपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति असंखेजवासाउयगन्भवतियच उप्पयथ लयरपंचिदियतिरिक्ख जोणिएहिंतो उचवअंति ?, गोयमा ! संखेजवासाउ एहिंतो उववअंति नो असंखेजवासाउएहिंतो उवचजंति, जर संखेजवा साउयगन्भवकंतिय चउप्पयथल यरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उनवअंति किं पञ्जत्तगसंखेज्जवासाउयगन्भवकंतियच उप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उबबजंति अपजतगसंखेजवा साउयगम्भवकंतियच उप्पयथलयर पंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उबवअंति १, गोयमा । पञ्जतेहिंतो उबवजंतिनो अपजत संखेजवासाउएहिंतो उबब अंति, जइ परिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववअंति किं उरपरिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उबवजति भूयपरिसप्पथलयरपंचिदियति रिक्खजोणिएहिंतो उबवजंति ?, गोयमा ! दोहिंतोवि उववअंति, जड़ उरपरिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति किं संयुच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववअंति गम्भवतियउरपरिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उबवजंति ?, गोयमा ! संमुच्छ मेहिंतो उववजंति गन्भवतिएहिंतोवि उववअंति, जइ संमुच्छिमउरपरिसप्पथल वरपंचिंदियतिरिक्खजोणि
For Parts Use One
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