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आगम
[भाग-१८] “प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:)
पदं [५], --------------- उद्देशक: [-1, -------------- दारं --------------- मूलं [११८-१२१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
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[११८-१२१]
दीप
रसफासपजवेहि छहाणवडिए अट्टफासेहिं छट्ठाणवडिए, एवं जाव दसगुणकालए, संखेजगुणकालएवि एवं चेव, नवरं सट्ठाणे दुट्टाणवडिए, एवं असंखिजगुणकालएवि, नवरं सहाणे चउहाणवडिए, एवं अनंतगुणकालएवि नवरं सट्ठाणे छट्ठाणवडिए, एवं जहा कालवनस्स बताया भणिया तहा सेसाणवि वन्नगंधरसफासाणं बत्तवया माणियचा जाच अणंतगुणलुक्खे । जहओगाहणगाणं भंते ! दुपएसियाणं पुच्छा, गोयमा! अणंता पजवा पन्नचा, से केणद्वेणं भंते ! एवं वुचह, गोयमा ! जहन्नोगाहणए दुपएसिए खंधे जहनोगाहणस्स दुपएसियस्स खंघस्स दवट्टयाए तुले पएसट्टयाए तुल्ले ओगाहणहयाए तुल्ले ठिदए चउहाणपडिए कालबन्नपज्जवेहि छट्ठाणवडिए सेसवनगंधरसपज्जवेहि छट्ठाणवडिए सीयउसिणणिद्धलुक्खफासपनवेहि छवाणवडिए, से तेणडेणं गोयमा ! एवं चुच्चइ जहन्नोगाहणाणं दुपएसियाणं पोग्गलाणं अणंता पजवा पनत्ता, उकोसोगाहणएवि एवं चेव, अजहन्नमणुकोसोगाहणओ नत्थि, जहन्नीगाहणयाण भंते ! तिपएसियाणं पुच्छा, मोयमा ! अर्णता पज्जवा पचत्ता, से केणडेणं भंते ! एवं वुच्चइ ?, गोयमा ! जहा दुपएसिए जहन्नीगाहणए उकोसोगाहणएवि एवं चेव, एवं अजहन्नमणुकोसोगाहणएवि, जहनोगाहणयाणं भंते ! चउपएसियाणं पुच्छा, गोयमा ! जहा जहमोगाहणए दुपएसिए तहा जहमोगाहणए चउप्पएसिए एवं जहा उकोसोगाहणए दुपएसिए तहा उकोसोगाहणए चउप्पएसिएवि, एवं अजहन्नमणुकोसोगाहणएवि चउप्पएसिए, णवरं ओगाहणट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सियमम्भहिए जह हीणे पएसहीणे अह अम्महिए पएसअम्भहिए एवं जाव दसपएसिएण्यवं, णवरं अजहन्नुकोसोगाहणए पएसपरिवुड्डी कायदा जाव दसपएसियस सच पएसा परिवडिअंति, जहमोगाहणगाणं भंते ! संखेज्जपएसियाणं पुच्छा, गोयमा ! अणता पञ्जबा पन्नता, से
अनुक्रम [३२२-३२५]]
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