________________
आगम
(१५)
[भाग-१८] “प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:)
पदं [५], --------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं --------------- मूलं [११२-११७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत
५पर्याय
सूत्रांक
प्रज्ञापनायाः मलय०वृत्तौ.18
पदे पञ्चेन्द्रियतिरश्वांसू. ११५
[११२-११७]]
॥१९॥
दीप
त्ता, से केणडेणं भंते ! एवं बुच्चइ ?, गोयमा ! जहन्नाभिणिबोहियणाणी पंचिंदियतिरिक्खजोणिए जहन्नाभिणिवोहियणाणिस्स पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स दबट्टयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुले ओगाहणद्वयाए चउढाणवडिए वनगंधरसफासपजवेहिं छहाणवडिए आभिणियोहियनाणपञ्जवहिं तुल्ले सुयनाणपजवेहिं छट्ठाणवडिए चक्खुदसणपजहिं छट्ठाणवडिए अचक्खुदंसणपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए, एवं उकोसाभिणिबोहियनाणीचि, णवरं ठिईए तिहाणवडिए, तिनि नाणा तिन्नि दसणा सहाणे तुल्ले सेसेसु छहाणवडिए, अजहन्नमणुकोसामिणिबोहियनाणी जहा उक्कोसाभिणिबोहियनाणी गवरं ठिईए चउहाणबडिए, सट्टाणे छहाणवडिए, एवं सुयनाणीवि, जहबोहिनाणीणं भंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गोयमा ! अर्णता पञ्जवा पन्नत्ता, से केणट्टेणं भंते ! एवं चुच्चइ, गोयमा !, जहबोहिनाणी पंचिंदियतिरिक्खजोणिए जहमोहिनाणिस्स पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स दबयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले ओगाहणट्टयाए चउहाणवडिए ठिईए तिहाणवाडिए बन्नगंधरसफासपज्जवेहिं आभिणिबोहियनाणसुयनाणपज्जवेहिं छहाणवडिए ओहिनाणपज्जवेहिं तुल्ले, अनाणा नत्थि, चक्खुदंसणपज्जवेहिं अचखुर्दसणपजवेहि य ओहिदंसगपञ्जवेहिं छहाणवडिए, एवं उफोसोहिनाणीवि अजहनोकोसोहिनाणीवि एवं चेव, गवरं सहाणे छट्ठाणबडिए, जहा आभिणिबोहियनाणी तहा मइअन्नाणी सुयअनाणी य, जहा ओहिनाणी तहा विभंगनाणीवि, चक्खुदसणी अचखुदंसणी य जहा आभिणियोहियनाणी, ओहिदंसणी जहा ओहिनाणी, जत्थ नाणा तत्थ अन्नाणा नस्थि जत्थ अन्नाणा तत्थ नाणा नत्थि, जत्थ दसणा तत्थ णाणावि अन्नाणावि अस्थिति भाणिय (सूत्र० ११५) जहन्नीगाहणगाणं भंते ! मणुस्साणं केवड्या पजवा पनत्ता, गोयमा ! अर्णता पजवा पत्र
एर esecredeo
Veedeesecseccareesese
अनुक्रम [३१६-३२१]
॥१९॥
मनुष्याणाम् पर्याया:
~394~