________________
आगम
[भाग-१८] “प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:)
पदं [५], --------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं --------------- मूलं [११२-११७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
प्रज्ञापनाया: मलय० वृत्ती. ॥१९॥
५पर्यायपदे पञ्चे|न्द्रियतिKI रश्चांसू.
११५
[११२
-११७]]
भंते । एवं चह-जहागुणकालगाणं वेइंदियाणं अर्णता पजवा पन्नचा ?, गोयमा! जहनगुणकालए बेईदिए जहमगुणकालगस्स बेइंदियस्स दवढयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले ओगाहणट्टयाए छहाणवडिए ठिईए तिद्वाणवडिए कालवअपज्जवेहिं तुल्ले अवसेसेहिं वनगंधरसफासपनवेहिं दोहिं नाणेहिं दोहि अनाणेहिं अचक्खुदंसणपञ्जवेहि य छट्ठाणवडिए, एवं उकोसगुणकालएपि, अजहन्नमणुकोसगुणकालएवि एवं चेव, गवरं सट्ठाणे छट्ठाणवडिए, एवं पंच बना दो गंधा पंच रसा अढ फासा भाणियथा, जहनाभिणिबोहियनाणीणं भंते ! बेइंदियाणं केवइया पजवा पत्नत्ता, गोयमा! अणंता पज्जया पनत्ता, से केणद्वेणं भंते ! एवं बुच्चइ-जहन्नाभिणियोहियनाणीणं बेइंदियाणं अर्णता पञ्जवा पाचा!, गोयमा! जहयाभिणियोहियणाणी बेईदिए जहन्नाभिणियोहियणाणिस्स बेईदियस्स दबट्टयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुले ओगाहणट्टयाए चउद्वाणवडिए ठिईए तिहाणवडिए बन्नगंधरसफासपनवेहि छट्ठाणबडिए आभिणियोहियणाणपज्जबेहि तुल्ले सुयणाणपजरेहि छद्वाणवडिए अचक्खुदंसणपज्जवेहिं छढाणवडिए, एवं उकोसाभिणियोहियणाणीवि, अजहन्नमणुकोसामिणिबोहियणाणीवि एवं चेव, नवरं सहाणे छट्टाणवडिए, एवं सुयनाणीवि सुयअन्नाणीवि अचक्खुदंसणीवि, गवरं जत्थ णाणा तत्थ अत्राणा नत्थि जत्थ अनाणा तत्व णाणा नस्थि, जत्थ दंसणं तत्थ णाणावि अन्नाणाधि, एवं तेइंदियाणवि, चउरिदियाणवि एवं चेव णवरं चक्खुदंसणं अम्भहियं (मूत्र. ११४) जहबोगाहणगाणं भंते! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं केवड्या पजवा पबत्ता, गोयमा ! अणंता पजवा पनत्ता, से केणटेणं भंते । एवं बुबह जहमोगाहणगाणं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं अणंता पज्जवा पन्नता, गोयमा ! जहन्नोगाहणए पंचिंदियतिरिक्खजोगिए जहनीगाहणयस्स पंचिंदियतिरि
दीप
अनुक्रम [३१६-३२१]
॥१९॥
ele
~392~