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________________ आगम [भाग-१८] “प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [५], --------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं [-], -------------- मूलं [१०५-११०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१०५ अब्भहिए असंखिजहभागअन्भहिए वा संखिज्जइभागअब्भहिए वा संखिजगुणअब्भहिए वा वहिं गंधेहिं रसेहिं फासेहिं मरमाणपञ्जवहिं सुयअनाणपजवेहिं अचक्खुदसणपअवेहिं छट्ठाणवडिए।आउकाइयाणं भंते ! केवइया पजवा पवना, गोयमा ! अणंता पञ्जवा पन्नता, से केणटेणं मंते ! एवं बुबह आउकाइयाणं अपंता पञ्जवा पनत्ता, गोयमा ! आउकाहए आउकाइयस्स दयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले ओगाहणट्ठयाए चउढाणवडिए ठिईए तिहाणवडिए बनगंधरसफासमहअन्नाणमुअअचाणअचक्खुदंसणपजवेहिं छहाणवडिए । तेउकाइयाणं पुच्छा गोयमा! अर्णता पजवा पचचा, से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-तेउकाइयाणं अर्णता पजवा पन्नता, गोयमा ! तेउकाइए तेउकाइयस्स दबट्टयाए तुळे पएसट्टयाए तुल्ले ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए, ठिईए तिहाणवडिए, बनगंधरसफासमइअनापासुयअन्नाणअचखुदंसणपजबेहि य छटाणवडिए ॥ वाउकाइयाणं पुच्छा गोयमा ! बाउकाइयाणं अणंता पञ्जवा पन्नता, से केणटेणं भंते ! एवं बुबइ-बाउकाइयाणं अर्णता पञ्जवा पन्नत्ता, गोयमा! वाउकाइए बाउकाइयस्स दवयाए तुल्ले पएसहयाए तुल्छे ओगाहणद्वयाए चउहाणबडिए ठिईए तिहाणवडिए वनगंधरसफासमइअन्नाणसुयअन्नाणअचक्खुदसणपजवेहिं छहाणवडिए ।। वणस्सइकाइयाणं पुच्छा गीयमा! अर्णता पजवा पनचा, से केणढणं भंते ! एवं बुबह-वणस्सइकाइयाणं अणंता पञ्जवा पन्नचा ?, गोयमा! वणस्सइकाइए वणस्सइकाइयस्स दबयाए तल्ले पएसट्टयाए तुले ओगाहणट्टयाए चउहाणवडिए ठिईए तिहाणवडिए वनगंधरसफासमइअनाणसुयअन्नाणअचक्खुदसणपज्जवेहि य छटाणवडिए, से एएणडेणं गोयमा ! एवं बुच्चय--वणस्सइकाइयाणं अणंता पन्जवा पन्नत्ता ।। (सू०१६) वेइंदियाणं पुच्छा गोयमा! अर्णता पवा दीप elepersecseeeesesesese अनुक्रम [३०९-३१४]] ~381~
SR No.035018
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 18 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages426
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size93 MB
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