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________________ आगम [भाग-१८] “प्रज्ञापना" - पदं [४], --------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं --------------- मूलं [९५-१०१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: अज्ञापना प्रत सूत्रांक [९५१०१] या: मलयवृत्ती. ॥१७॥ स्थिति| पदे द्वीन्द्रियादीनां स्थितिः . Sacaendaeesa0 मा! जहमेणं अंतोसहुत् उकोसेणं तिन्नि वाससहस्साई, अपजत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणषि उकोसेणवि अंतोमुहुतं, पजत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहलेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिनि वाससहस्साई अंतोमहसूणाई । वणफइकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पन्नता, गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं दस वाससहस्साई, अपजचयाणं पुच्छा गोययमा ! जहणवि उकोसेणवि अंतोमुहुत्तं, पजत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहु उकोसेणं दस बाससहस्साई अंतोमहत्तूणाई, सुहुमवणफइकाइयाणं ओहियाणं अपजताण पञ्जत्ताण य पुच्छा गोयमा! जहन्त्रेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुर, बायरवणप्फइकाइयाण पुच्छा गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुर्त उकोसेणं दस वाससहस्साई, अपज्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहणवि उफोसेणवि अंतोमुहुन, पजत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुर्त उक्कोसेणं दस वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई ।। (सू०९६) । बेइंदियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पन्नता, गोयमा! जहनेणं अंतोमुहु उकोसेणं बारस संवच्छराई, अपज्जत्तयाणं पुरछा गोयमा । जहणवि उक्कोसेणवि अंतोमहर्च, पजत्तयाणं पुच्छा गोयमा! जहन्ने] अंतोमुहुत् उफोसेणं बारस संवच्छराई अंतोमुत्तूणाई । तेइंदियाण मंते ! केवइयं कालं ठिई पबत्ता, गोयमा ! जहनेणं अंतोमुहुर्त उकोसेणं एगुणवत्रं राईदियाई, अपजत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहणवि उकोसेणवि अंतोमुहुर्त, पज्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहोणं अंतोमुहुर्च उकोसेणं एगुणवत्रं राईदियाई अंतोमुहत्तणाई चउरिदियाणं भंते ! केवइयं काल ठिई पचत्ता, गोयमा ! जहनेणं अंतोमहरी उक्कोसेणं छम्मासा, अपज्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणवि उकोसणषि अंतोमुहुर्त, पजत्तयाण पुच्छा गोयमा ! जहणं अंतोमहत्तं उक्कोसेणं छम्मासा अंतीमुहत्तूणा ॥ (सू०९७)पंचिदियतिरि दीप अनुक्रम [२९९ -३०५] ॥१७॥ SAREarattin international द्वि-इन्द्रियादिनाम् स्थिति:/(आयुः) ~356~
SR No.035018
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 18 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages426
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size93 MB
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