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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१२], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [६], मूलं [४५६] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: उद्देश प्रत सूत्रांक [४५६] दीप अनुक्रम [५४९] व्याख्या-1 भोगे पचणुम्भवमाणा विहरंति ?, गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे पढमजोवणुट्ठाणवलत्थे पढमजोवणुप्रज्ञप्तिः | हाणवलवाए भारियाए सर्दि अचिरवत्तविवाहकज्जे अस्थगवेसणघाए सोलसवासविष्पवासिए से तो अभयदेवी लट्ठ कपकज्जे अणहसमग्गे पुणरवि नियगगिहं हवमागए कयवलिकम्मे कयकोज्यमंगलपायकिछत्ते सवालं. दशश्यादित्य या वृत्तिः२कारविभूसिए मणुन्नं थालिपागसुद्धं अट्ठारसवंजणाकुलं भोयणं भुत्ते समाणे तंसि तारिसगंसि बासघरंसि योरन्वर्थः ॥५७८॥ वनओ महबले कुमारे जाव सयणोवयारकलिए ताए तारिसियाए भारियाए सिंगारागारचारुवेसाए जाव ज्योतिष्ककलियाए अणुरत्ताए अविरत्ताए मणाणुकुलाए सद्धिं इ8 सद्दे फरिसे जाव पंचविहे माणुस्सए कामभोगे कामभोगाः पचणुब्भवमाणे विहरति, से णं गोयमा! पुरिसे विउसमणकालसमयंसि केरिसयं सायासोक्खं पचणुब्भव सू४५४माणो विहरति ?, ओरालं समणाउसो, तस्स णं गोयमा ! पुरिसस्स कामभोगेहिंतो वाणमंतराणं देवाणं ४५६ अणतगुणविसिहतराए चेव कामभोगा, वाणमंतराणं देवाणं कामभोगेहितो असुरिंदवज्जियाणं भवणवाहै सीणं देवाणं एत्तो अर्णतगुणविसिहतराए चेव कामभोगा, असुरिंदवजियाणं भवणवासियाणं देवाणं का मभोगेहिंतो असुरकुमाराणं देवाणं एत्तो अणंतगुणविसिद्धृतराए चेव कामभोगा, असुरकुमाराणं देवाणं कामभोगेहिंतो गहगणनक्खत्ततारारूवाणं जोतिसियाणं देवाणं एत्तो अनंतगुणविसिट्टतराए चेष कामभोगा, है गहगणनक्खत्तजाव कामभोगेहिंतो चंदिमसूरियाणं जोतिसियाणं जोतिसराईणं एत्तो अर्णतगुणवि- ५७८॥ सिट्ठयरा चेव कामभोगा, चंदिमसूरियाणं गोयमा ! जोतिसिंदा जोतिसरायाणो एरिसे कामभोगे चन्द्र एवं सूर्यस्य काम-भोग: ~66~
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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