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आगम (०५)
[भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१५], वर्ग -1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [-], मूलं [५५०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [५५०]
दीप अनुक्रम [६४८]
व्याख्या-विहरिता ताओ देवलोयाओ आउ० ३ जाव चहत्ता दोचे सन्निगन्भे जीवे पञ्चायाति, से णं तओहितो १५गोशा
प्रज्ञप्तिः अणंतरं उच्चहित्ता हेहिल्ले माणसे संजूहे देवे उववजइ, से णं तत्थ दिवाई जाव चइता तचे सन्निगन्भे जीवेलकशते अभयदेवी-४ पचायाति, सेणं तओहिंतो जाव उच्चट्टित्ता उवरिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववजिहिति, से णं तत्थ दिवाई परावृत्तयावृत्तिः२
सद भोग जाव चइत्ता चउत्थे सन्निगम्भे जीवे पञ्चायाति, से णं तओहितो अणंतरं उदहित्ता मज्झिल्ले माणुसुत्तरे । परिहारः ॥६७४॥
संजूहे देवे उबवज्जति, से णं तत्थ दिवाई भोग जाव चइत्ता पंचमे सन्निगम्भे जीवे पचायाति, से णं तओ-18| सू ५५० 18 हितो अणंतरं उद्यहित्ता हिडिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववजति, से णं तत्थ दिवाई भोग जाव चइत्ता छ88
सन्निगन्भे जीवे पञ्चायाति, से णं तओहितो अणंतरं उववाहित्ता बंभलोगे नाम से कप्पे पन्नत्ते पाईणपडीPणायते उदीणदाहिणविच्छिन्ने जहा ठाणपदे जाच पंच बडेंसगा पं०, तंजहा-असोगवडेंसए जाव पडिरूवा, 8 से तत्थ देचे उचबज्जइ, से णं तस्थ दस सागरोवमाई दिवाई भोग जाव चइता सत्तमे सनिगम्भे जीवे | पञ्चायाति, से णं तत्थ नवण्ह मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अट्ठमाण जाब चीतिकंताणं सुकुमालगभद्दलए मिउ| कुंडलकुंचियकेसए मट्ठगंडतलकन्नपीढए देवकुमारसप्पभए दारए पयायति, से णं अहं कासवा, तेणं अहंका
|आउसो! कासवा ! कोमारियपबजाए कोमारएणं बंभचेरवासेणं अविद्धकन्नए चेव संखाणं पडिलभामि सं० IC||२ इमे सत्त पउट्टपरिहारे परिहरामि, तंजहा-एणेजगस्स मल्लरामस्स मल्लमंडियस्स रोहस्स भारदाइस्स अज्जु-II
णगस्स गोयमपुत्तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स, तत्थ णं जे से पढमे पउपरिहारे से णं रायगिहस्स नग
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गोशालक-चरित्रं
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