SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गम (०१) प्रत सूत्रांक [१६] दीप अनुक्रम [१७] “आचार” - अंगसूत्र - १ ( मूलं + निर्युक्तिः + वृत्ति श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [ १ ], उद्देशक [२], मूलं [ १६ ], निर्युक्ति: [ १०५ ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित......आगमसूत्र [०१] अंग सूत्र [०१] "आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्तिः श्रीआचा राङ्गवृत्तिः (शी०) ।। ३७ ।। 11-964 ucation internation अंधमभे अप्पे अंधमच्छे अप्पेगे पायमध्ये अप्पेगे पायमच्छे अप्पेगे गुप्फमब्भे अप्पे गुप्फमच्छे अप्पेगे जंघमन्भे २ अप्पेगे जाणुमव्भे २ अप्पेगे ऊरुमभे २ अपेगे कडिमभे २ अप्पेगे णाभिमन्भे २ अप्पेगे उदरमन्भे २ अप्पेगे पासमभे २ अप्पेगे पिट्टमभे २ अप्पेगे उरमब्भे २ अप्पेगे हिययमब्भे २ अप्पेगे थणमब्भे २ अप्पेगे खंधमभे २ अप्पेगे बाहुमब्भे २ अप्येगे हत्थमन्भे २ अप्पेगे अंगुलिमब्भे २ अप्पे हम भे २ अप्पेगे गीवमब्भे २ अप्पेगे हणुमब्भे २ अप्पेगे होट्टमभे. २ अप्पे दंतमव्भे २ अप्पेगे जिब्भमन्भे २ अप्पेगे तालुमन्भे २ अप्पेगे गलम भे २ अप्पेगे गंडमभे २ अप्पेगे कण्णमभे २ अप्पे णासमवभे २ अप्पेगे अच्छिम मे २ अप्पे भमुहममे २ अप्पेगे णिडालमब्भे २ अप्पेगे सीसमन्भे २ अप्पेगे संपनारए मा अप्पेगे उद्दवए, इत्थं सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णांता भवंति ( सू० १६ ) पृथ्विकायस्य हिंसकानाम् वेदानायाः अज्ञानं For Parts Only [85] अध्ययनं १ उद्देशकः २ ॥ ३७ ॥ wor
SR No.035001
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 01 Aachaar Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages314
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size64 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy