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________________ वकी-अच्छा. फीर सुनिये ! वादी चतुर्दशीके क्षय चतुर्दशीको पूर्णिमामें लेजाता है क्योंकि उसकी मान्यता यहां पर ऐसी है की-पूर्णिमा, पर्व होनेसे चतुर्दशीको भी वहीं ले जाना अच्छा है, वादीकी इसी मान्यतानुसार उसको शास्त्रकार कहते है कि जैसे चतुर्दशीके बाद पूर्णिमा पर्व हैं वैसे ही पर्युषणाकी चतुर्थीके पीछे पंचमी भी पर्व है. तो उस चतुर्थीके क्षयमें तो तूं पंचमीमें, चतुर्थीको नहीं ले जाता है ! वादीको यह आपत्ति देकर शास्त्रकारके कहनेका भावार्थ यही है कि पंचमी में से संवत्सरी पनागया है परंतु पंचमीत्वता तो कायमही है! और आपके गुरुजीतो उसमेंसे पंचमीत्वको ही उड़ादेते है यही उनकी अज्ञान मूल अनर्थ कारिता है. अच्छा आगेको पढ़िये. इन्द्र०-(पढ़ते है) "किंच पाक्षिक कृत्यं पश्चदश्यां न युक्तमेव" चतुर्दशी (अह चउदसी तो पक्खियं) 'पडिकमिय साहुविस्सामणं कुणइत्ति (भवदाप्तो क्तेः) अर्थ:-और यहभी एक बात है कि पूर्णिमाके अंदर चतुदशीका कृत्य योग्य नहीं है (क्योंकि) उसदिन चतुर्दशी होवे तो चतुर्दशी पडिक्कमके साधुओंकी विश्रामण करे, और चतुदशी न होवे तो देवसीक पडिकमके साधुओंकी विश्रामणा करे। ऐसा तुम्हारे आसोकाही कहा हुआ है. किंच चतुर्दशी पौर्णमासी चेत्युमे अप्याराध्यत्वेन सम्मतेस्तः तद्यदि भवदुक्त रीतिराश्रीयते तर्हि पौर्णमास्येवाराधिता, चतुर्दश्याचाराधनं दत्तांजलीव भवेत् यदि च तत् क्षये तदा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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