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________________ (५३) मिलान कीजियम माहाराजको कृतिकशासन-शिरताज साक्षीमें दिये हुवे पाठकी हां इतनी बात अवश्य है कि साक्षीमें दिये हुए पाठमें यदि कोई कठीन शब्द होतो उसका पर्यायवाची अन्य शब्द रख देते है-वहतो यहां है नहीं! इसीसे सावीत होता है कि जंबुवि० के पासकी जुनि प्रतिमें जो साक्षी गाथाकी टीका है वह टीका टीकाकारकीतो हे ही नहीं. दूसरी बात यह है कि परमगीतार्थवर्य शासन-शिरताज श्रीमान् धर्मसागरजी माहाराजकी कृति के साथ इस कृतिको मिलान कीजिये ! क्या यह कृति उनकी कृतिके साथ मिलती है ? नहीं! हरगिज नहीं!! तीसरी बात यह है कि ये दो गाथायें कठीन होनेसे टीकाकारने इन गाथाओंकी व्याख्या की हो तो यहभी असं. गत ही है क्योकि इसमें पूर्वगाथाकोंतो सुगम करके टाल दी है और दूसरी गाथाका पूर्वार्ध सुगम होते हुए भी उसकी व्याख्या की है. ऐसी रचना प्रौढ़ ग्रन्थकारके हाथसे होती है क्या ? अपने ही वाक्यकी किम्मत श्रीमान् धर्मसागरजी माहा. राजको न थी ऐसाही जंबुवि० अपने पासवाली जुनी प्रतिसे मनानेका प्रयास करते है या अन्य कुछ ? यह क्या सजनता है ? अब चोथी बात यह है कि " चतुर्दशीके क्षयमें त्रयोदशीको चतुर्दशी ही कहना" इसी बातके पुरावे में ग्रंथकारने ये दो गाथाएं यहां पर दर्ज की है और जंबुवि० इन दो गाथाकी व्याख्यामें तो ऐसा कहते कि त्रयोदशी चतुर्दशीकी संज्ञाकोभी प्राप्त होतीहै अर्थात् उसदिन त्रयोदशीतो है ! ऐसा मूल ग्रन्थ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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