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________________ (४९) लेवी, पण चउदशनो क्षय होय त्यारे पुनम लेवी" तेनी (एममाननारनी) मनोभ्रान्ति दुर करवा माटे उत्तरार्द्धद्वारा शास्त्रकार कहे छे के हीन एटले क्षीण थयेलं पण पाक्षीक एटले चउदशी पर्व पूर्णिमामां करं प्रमाणभूत नथी, कारण के पूर्णिमाना दिवसे चतुर्दशीना भोगनी गंध सरखी पण नथी किंतु तेरसना दिवसेज करतुं प्रमाणभूत छे. आ विषेनी दृष्टान्तवाली युक्तियों आगल आज ग्रंथमां कहीं. वकी० - बस अब आप मुकाबला कीजिये. 'अंगीकृत्य श. व्दका अर्थ आपने कहा था 'मंजुर करके.' और आपके गुरुवर्य कहते है 'कबुल राखवा छतां (पंडितजी की ओर देखकर ) कहिये पंडितजी ! यवंत अव्ययका अर्थ सति सप्तमी होता है क्या १ पंडि० - नहीं होता. वकी० - "कश्चिद् भ्रान्त्या " का अर्थ आपने क्या किया और आपके पूज्यश्रीने क्या किया ? और "स्त्रमति मांधात् अर्द्धजरतीय न्याय" वाक्यके अर्थ को तो ॐ स्वाहा: अच्छा. अब आगे पढ़ीयें. - इन्द्र०- ( पर्व. प्र० पृ. २२ नीचे सें) वादी, अहीं ग्रंथकार सामें शंका उठावे छे के — औदयिक तिथिनो स्वीकार अन्य तिथिनो तिरस्कार करवामां आपणे बन्ने छीए तो तेरसनो चौदश रूपे स्वीकार करवो शी रीते योग्य छे ? पू. २३ग्रंथकार एने समाधान आपे छे के - 'तारूं कहेतुं ठीक छे परंतु प्रायश्चित्तादि विधिमां तेरसने चौदश एवं नाम आपलं होवाथी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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