SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३१) करती हुई स्टेशनके प्लेट फॉर्म पर आ सकती है. कुली, कुलीकी आवाजके साथ, बराती गाडीके डिब्बोंसे नीचे उतरतें है. कई दनादन अपने बिस्तर, डिब्बोंकी खिड़कियों बाहर डालते है. इस प्रकार तमाम बराती प्लेट फार्मसें निकलकर मुसाफिरखाने में आइटतें है, इधर दुल्हनकी तरफ बरातके स्वागतको आये हुए लोग भी वहीं एकत्रित हो जाते है. एक मेलासा हो गया है ! स्वागत करनेवाले बरातियोंकों स्टेशनके पास में खडे किये गये शामयानेमें चताकर भोजनकी आरजू करते है. एकके बाद एक-कुछ आगे, कुछ पीछे-इस प्रकार करके बराती लोग शामयानेमें आ पहुँचते है. बरातियों का भोजन शुरू होता है. भोजन खत्म होतेही बरातियोंके असबाबको तांगे व मोटरोंमें डाला जा रहा है. बरातियोंको मोटरों व तांगोमें बैठ जानेको कहा जा रहा है. सब बराती, यानारूढ़ हो जाते है. जुलूसकी जमावट बा जाप्ता हो जाते ही. नकारेकी आवजके साथ जुलूस शहरकी तर्फ प्रस्थान करता है. जुलूममें हाथी-घोडों बग्धीयों और मोटरों की एक बड़ी कतार बंध गई है ! इस प्रकार बाजे गाजेके पूरे ठाठके साथ जुलूम शहरमें प्रवेश करता है. षष्ठम किरण. (स्थान-इन्द्रपुरशहरकी एक भव्य हवेली) शहरके मध्यके भव्य बाजारमें एक अलीशान इमारत बनीहुई है. इसमें कुंवरसाहब सौभाग्यमलजीकी चरातमें आये Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy