SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . वकी-आप भूलतें है उससाल अन्य पंचगों में छठका क्षय था इसीसे उन पंचांगोंकी छठको क्षय मानकर ही शुक्र. वार मनायाथा. यहतो ठीक परंतु उसी साल राम मान्यताकों अपनानेवाले श्रीमेघमूरिजी माहाराजने अहमदाबाद पगथीयेके उपाश्रय में भाद्रपद कृष्ण (गुजराती श्रावण कृष्ण)७मीको याने पर्युषणा पर्वके चार दिन ही पहले रतलामवाले एक व्यक्तिकों फरमायाथा कि जोधपुरी पंचांगमें पंचमीका क्षय है, और अपनों में पर्वतिथिका क्षय नहीं होता है, इसी लिये सागरजी माहा. राज तीजका क्षय मानकर गुरुवार करेंगे, तब उस व्यक्तिने कहा कि आप सब शुक्रवार कैसे करते है ? इसके जवाबमें श्री मेघसरिजीने अपने श्रीमुखसे फरमाया था कि अन्य पंचांगोंमें छठका क्षय होनेकी वजहसे सबही छठका क्षय मानेंगे, और श्रीदानसूरिजीने भी वीरशासन ता. २१-१०-१९३२ आसोज वीदी ७ मी गु० के अंकमें छपवायाथा कि इस वक्त दूसरे पंचांगमें छठका क्षय होनेसे चतुर्थी शुक्रवारको संवत्सरी है, इसके अलावा दानप्रश्नोत्तर भा. २ पृ. २८० प्र० १६०के उत्तरमें भी श्रीदानसूरिजीने चंडांशुचंडु को छोड़कर अन्य पंचांगों की छह ही का क्षय कबूल किया है नकि ५ मी का ऐसा होते हुएभी उसवक्त सबहीने पंचमीको क्षय मानकर शुक्रवारके रोज संवत्सरी पर्व कियाथा ऐसा कहना कहां तक न्याय संगत है। इस क्षयवृद्धिकी मान्यताको तो तानवें में ही आचार्य बनकर उसी चौमासेमें (बम्बई) से चालु की गई है ! अजी जाने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy