SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२१९) कारण होनेसें "क्षये पूर्वा०"का नियम, विशेष नियम है. और "उदयंमि०" वाला नियम, सामान्य नियम है इसके अलावा भी हमलोगतो "क्षये पूर्वा०" के नियमसे पूर्वतिथिका क्षय मानते हुए होनेसे वह क्षीणतिथि भी हमकों तो सूर्योदयसे ही तत्तिथिरूप प्राप्त होती है। वास्ते दोनो वक्त दोनों नियमोंका पालन हमकोतो स्पष्ट रीत्या होता है ! वादीकों तो दोनोवक्त उन दोनो नियमों में परस्पर विरोध स्पष्ट ही है (सामान्य और विशेष नियमकी बाबत मैंने कौमुदिके सूत्रोंका दाखला भी दिया है. ) अब वादी वृद्धि बाबत हीरप्रश्नको पुरावे में रखते है, वहां प्रश्न हुआ है कि-"यदा चतुर्दश्यां कल्पो वाच्यते अमावास्यादि वृद्धौ वा अमावास्यायां प्रतिपदि कल्पोवाच्यते" इत्यादि यदि पर्वतिथिकी वृद्धि नहीं होती तो " अमावास्यादिवृद्धौ " ऐसा प्रश्न ही नहीं होता. इस प्रश्नसे यही साबीत हुआ कि-पर्वतिथिकी वृद्धि होती है. इसके जवाब में प्रतिवादीका कहना है कि-प्रश्नकारने जो दो अमावस कही है, वहतो लौकिक पंचांगके अनुसारही कही है. श्रीहीरसूरिजी माहाराजको-डबल पर्वतिथिकी मान्यता होती तो प्रश्नकार पहली या दसरी अमावास्यामें कल्पवांचन होता है-ऐसा ही कहते; परंतु वहांतो "अमावास्यायो" ऐसा एकवचनात्मक प्रयोग होनेसे सिद्ध हुआ कि-जैनोमें पर्वतिथिकी पद्धि नहीं होती है, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy