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________________ (२११) क्षयवृद्धि करे के, ते श्रीतत्त्वतरंगिणी आदि शास्त्रोना आधारे सत्य तरीके साबीत करवानी तथा तमारा तत्त्वतरंगिणीना अनुवादनुं जुट्ठापणु साबीत करवानी (अमोए) प्रतिज्ञा करी छे, ते हयात छे. तमोए श्रीतच्चतरंगिणी ग्रंथना आधारे पर्वतिथिनी क्षयवृद्धिए अपर्वतिथिनी क्षयवृद्धि करवी ए शास्त्रविरुद्ध छे एम सावीत करवा आ पत्रमांज कयुं छे, तो अठवाडीयामां दिवस जणावी मध्यस्थ अने स्थल व्यवस्था करी जणावयु. ता. का-(१) श्रीहीरप्रश्नादिनो विरोध टालवो, एतो उभय पक्षनी फरज छे. (२) श्रीसिद्धचक्रनां तमो जुट्टाणां जणावो ते जो तटस्थ सत्य कहेशे तो प्रमार्जन कराशे. आनंदसागर. सीता०-(वकीलसा से) वकीलसाहब! इन पत्रों में पहला पत्र तो फा० शु०१५ का आया और बादके सभी पत्र फा० कृ० में आये इसमें क्या मामला हैं? की०-गुजरातमें ऐसा ही चलता है अर्थात शुक्ल १ से महीने का प्रारंभ होता है, और अमावास्याको समाप्ति होती है. जैसे फा० शु० १ से महीनेकी शुरूआत और अपनी चैत्रकृष्ण अमावास्याको फाल्गुन माहकी गुजरातमें समाप्ति होती है. अर्थात् अपनी साथ उनोकी शुक्लपक्षमें समानता रहती हैं और कृष्णपक्षमें विषमता होती है. अच्छा,अब आप आगेचलाइये, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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