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________________ वकी०-(सहस्रमलजीसे) आईये ! आईये !! आज तो आपको तकलीफ दी है !!! सहस्र-कुछ हर्ज नहीं ! आपकी दी हुई तकलीफ को मैं तो अपना अहोभाग्य समझता ! कहिये क्या हुक्म होता है? वकी०-आप अपने हाथमें ये कागजात कोनसे लाये है? सहस्र०-आपके यहां चलती हुई चर्चासे संबंध रखनेवाले ही है। वकी-अच्छा, पहिले तो आप पालीताणेमें तिथिचर्चा संबंधि जंबुविजयजी और श्रीसागरजी माहाराजके बिच में क्या बनाव बनाथा उसे कह सुनाईये ? सह-अच्छा सुनिये ! जैनशास्त्रानुसार पर्वतिथिकी हानिवृद्धि नहीं होती, यह बात जाहेर होते हुए रामविजयजीने क्षयवृद्धिका नया मत निकाला यहभी जगजाहेर ही है. और इसकी चर्चा संवत् तान वे चौरानवेमें (मत निकला उसीवक्त) खूब ही हो गई. उस वक्त प्रेसपोस्टवालोंका बाजारभी खूब ही गरम हुआथा, लेकिन नतिजा कुछ भी नहीं ! संवत् १९९५के माह फाल्गुनमें जं० वि० पालीताना आये, उस असे में आचायमाहाराज श्रीसागरानंदसूरीश्वरजीने आंख का ओपरेशन करवाया था. उसवक्त लिखने पढ़ने का काम बंद ही रहता है और डाकटर लोगभी कितनी ही मुदतके लिये मुमानियत करते है. इतने में अमदावादमें शेठ मोहनलाल छोटालाल के यहां उद्यापन होनेसे उन्होने आचार्यमाहाराजको अत्यंत आग्रहपूर्वक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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