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* समर्पण
परमोपकारी शासनप्रभावक परमपूज्य गुरुदेवश्री वाचकपदप्रतिष्ठायी महाराजश्रीक्षमासागरजी
गणिवर्यके पवित्र चरणकमलमें पूज्य गुरुदेवश्री ! यह पुस्तक आपकी पूर्ण कृपासे आपकी छत्र छाया में ही मैंने लिखाथा, जिसको आज करि बढ़ाई साल हो चुके है !
मुझे इस बातका खेद है कि इस पुस्तकके मुद्रित होनेके पहले ही आपश्रीने स्वरलोकको अलंकृत कर दिया ! ___तोभी मेरे अंतरचक्षुओमें रमण करती हुई आपकी परमोपकारी हसमुखमूर्ति व जगतमें विद्यमान आपकी यशस्मृर्तिके करकमलों में इस पुस्तकको सादर समर्पण करके अपने आत्माको कृतार्थ मानता हूं.
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वीर संवत् २४६८ विक्रम संवत् १९९९
आश्विन शुक्ल
विरहपीडित, आपका चरणकिंकर त्रैलोक्यकी कोटीशः वंदना.
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