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श्री वीरज्ञान निर्वाणका महोत्सव तो लोकके मुताबिक करना. ' वास्ते कदाग्रहको छोड़कर आगमानुसार आचार्योकी परंपरा से प्रवृत्ति कर, परंतु कदाग्रह करके कुमार्गका प्रवर्तन नहीं कर ! उत्सूत्र प्ररूपणा से अनंत संसारकी वृद्धि होती है. इससे सिद्ध हुआ कि पूर्णिमाकी वृद्धिमें त्रयोदशीकी वृद्धि करना. यह प्रश्न विचार सं. १८९५ चैत्रशुक्ल १४ के दिन पं० भोजाजीने लिखी है, खरतर गच्छवाले पादरा गाम में श्या. कपुरशाको लिख दी है. वैसे ही १३-१४ - ० ) ) तीनों तिथियें पूर्ण हो तबभी लोक चतुर्दशीको दीवाली करे तब त्रयोदशी चतुर्दशीको छड (बेला) करना. सबब कि - महावीरप्रभुका निर्वाणकल्याणक तो लोकके अनुसार ही करने का है. श्राद्धविधि में कहा है कि क्षय हो तब पहली तिथि करना, और वृद्धि हो तब दूसरी तिथि ग्रहण करना; महावीरप्रभुका निर्वाण तो लोकके अनुसार समझना. श्रीमान् देवसूरिजी माहाराजके इस पट्टकको देखिये !
इन्द्र० - इसमें तो श्रीदेवसूरिजीका तो नाम निशानभी नहीं हैं ? वकी० - श्रीदेवसूरिजी माहाराज पूर्णिमा और अमावास्थाकी वृद्धि में त्रयोदशी की वृद्धि करते है. और क्षयमें त्रयोदशीका क्षय करतें हैं, आनंद विजयसूरिजी महाराज पूर्णिमाकी वृद्धिमें एकमकी वृद्धि करते है. और क्षयमें एकमका क्षय करते है, और उसी मान्यतानुसार यह पट्टकभी पूर्णिमाकी वृद्धि में त्रयोदशीकी वृद्धि कहता है; तो यह पट्टक श्रीदेवसूरिजीका क्यों नहिं? और इसकी पुष्टी में देखिये यह श्रीमान् दीपविजयजीका पत्र !
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