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________________ लक्षण कहते हैं. सूयोदय वक्त में जो तिथि हो और वह तिथि अल्प हो तवभी उसीको तिथिपने समझना, परंतु उदय विना की बहुत हो तो भी उसे तिथि नहीं कहते हैं. श्री सेनप्रश्नके पहले उल्लासमें कहा है कि-उदय वक्त जो तिथि हो उसे ही प्रमाण रखना, किंतु उदय विना कि जो तिथि करने में आवे तो आज्ञाभंग-अनवस्था-मिथ्यात्व और विराधनाको प्राप्त होवे. इसीसे उदयवाली तिथि ही आराधन करना, किंतु अन्य नहीं. इसी तरहसे पूर्णिमा और अमावास्याकी वृद्धिमें पहले औदयिकी तिथि लेनेका रिवाज था परंतु (हालमें) किसीने कहा कि-श्रीमान् पहली तिथिको आराधन करने योग्य कहते है इसका क्या ? यहां उत्तर देते है कि पूर्णिमा अमावास्याकी वृद्धि में औदयिकी तिथिही जानना ऐसा हीरप्रश्नके दूसरे प्रका. शमें कहा है. इससे औदयिकी तिथि ही ग्रहण करना, अन्य नहीं. वैसे ही सेनप्रश्नके तीसरे उल्लासमें भी कहा है कि-जैसे अष्टमी वगैरह तिथियोंकी वृद्धि में दूसरी तिथि आराधन की जाती है उस दिन अष्टमी वगैरह तिथि पञ्चक्खाणके वक्ततो घटिका दो घटिका होने से आराधना भी तो उतनी ही होवे बादमें नवम्यादि तिथियों के आजानेसे और, पहले दिन रही हुई जष्टमीकी तो विराधना हुई! सबब पूर्णतया पहले दिन होनेसे. यदि पञ्चखाणका टाईम देखना होवे तो पहले दिन दोनो ही है. अर्थात् प्रत्याख्यानके वक्तभी अष्टमी होती है और वहांसे लेकर दिनरात रहती है ऐसे दोनो ही पहले दिन होते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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