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________________ (१६३) अखिरी हुक्म आज-याने जैष्ठकृष्ण १ ता. २३-६-१९४० को ही हुआ, तो आप क्या कहेंगे ? मैंने आज दो मुकदमें जीते' ऐसा ही कहेंगे न? वैसे ही तिथिमें भी समझना अर्थात् क्षीणतिथिके वस्त भी समाप्तिवाला दिन मंजुर रखना, वृद्धितिथिके मुआफिक क्षीणतिथिमें भी अवयवोंकी कल्पनासे दुःखित होना पड़ेगा. इस बातको बिना समझे ही 'क्षीणतिथिके वख्त पूर्वतिथिमें दोनो तिथियोंकी शास्त्रकारने आराधना की है.' ऐसा आप कहांसे ले आये ? इन्द्र०-मैंने आराधना कहां कही है ? मैने तो कहा है कि आज क्षीणतिथिमें दोनो कार्य किये. की०-आपके कार्यको में समझ चुका हुं, परंतु वहां परतो कहा है कि-ऐसे क्षीणतिथिमें भी व्याकुल होना पड़ेगा, न कि क्षीणतिथिमें दो कार्य किये, यहतो आपके ख्यालमें बराबर ही आ गया न ? इन्द्र०-जैसे कि आज मेंने दोनो मुकदमे जीते वैसे ही आज दोनो ही तिथिये है, ऐसा ही शास्त्रकारने कहा है ऐसा तो सिद्ध होता है न? वकी०-नहीं! बिलकुल नहीं!! सबब यदि उस एक दिनमें जो दोनोही तिथि आराधनके लीये मान्य होती तो वादीको ऐसा कभीभी नहीं कहते १ कि-'तूं अबतक त्रयोदशी त्रयोदशी बोलता है, जब हमने पहले 'जो चतुर्दशी ही कहना, ऐसी व्याख्या किथी उसवक्त क्या कानको बंद करके बैठाया? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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