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________________ इन्द्र-इमका मामुली अर्थतो यही होता है कि-तेरसके दिन भूल जाय तो एकमके दिन करें, परंतु "चौदश एकम" ऐसा अर्थ तो नहीं निकलता! शायद उपा० मा०ने अपि शब्दसें चतुर्दशी अध्याहार ली हो तो संभव हो सकता है. वकी०-अपि शब्द 'तो' अर्थमें है, नकि चतुर्दशी अर्थमें. आगेको चलकर उसी फकरेकी समाप्तिमें जं० वि० लिखते है कि-बिचारी तेरसे शो गुन्हो कयों के पुनमना क्षये तेने उड़ावो छो अने पड़वानो क्षय करवानुं नामे लेता नथी ? देखा न, आपके पूज्यश्रीने कितनी मोटी बुद्धिका उपयोग किया है ? शास्त्रकार खुद फरमातें है कि-"विस्मृतो." यदि "विस्मृती" ऐसा पाठ जो नही होता और जं० वि० लिखते कि-"बिचारी तेरस.” तबतो कुछ अंशसेमी उनका लिखान फलीन मान लेते; परंतु "भूल जायतो एकममें" ऐसे खुल्ले शब्दों के होते हुए भी जं० वि० अगडं बगडं लिख देते है यह कैसी बुद्धिमता? इन्द्र०-इससे यहतो सिद्ध हुआ कि-श्रीहीरसूरिजी माहागज आराधनामें पर्वतिथिका क्षय मानतेथे ! अगर नहीं मानते होते तो यह प्रश्नोत्तर ही नहिं उठता. वकी०-आपकी मान्यता गलत है; क्योंकि-लौकिक पंचांगमें सबही तिथियोंकी क्षयवृद्धि आती है, और इसीसें पर्वतिथियोंके क्षयवृद्धि संबंधी प्रश्न होता यह स्वाभाविक ही है. इन्द्र०-श्रीहीरसूरिमाहाराजभी पर्वतिथि क्षयके वख्त उस क्षीणतिथिका तप ही पूर्वअपर्वतिथिमें करनेका कहते है, नकि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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