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________________ (१३०) उस आरोपीत राजाका आराधन, करने (सेवने) योग्य नहीं हैं. वैसेही 'सिर्फ समास्थित ही राजा पूजने योग्य हैं। ऐसा भी नहीं है. अर्थात् राजा जहां हो वहां पूजने योग्य ही हैं. __ वकी०-(इन्द्रमलजीसे ) देखा साहब ! राजा सदृश दो चतुर्दशी ही है और आपतो एक राजगादीपर दो राजाको मानते हैं ! और बोलते हैं ! यह क्या न्यायसंगत है ? इन्द्र०-इससे यहतो साबीत हुआ कि तेरसको चउदशपने लेना योग्य है. परंतु पुनमके क्षयमें तेरसका क्षयतो अयो. ग्य ही है ! क्योंकि पूर्णिमाके क्षयमें त्रयोदशीके दिन तो 'उदयमिक नियमसें चतुर्दशीकी गंधतक नहीं होती है और उसदिन चतुर्दशी करना यहतो सरासर अन्याय ही है. वकी०-दर असल बात यह है कि भोग है गंध है वगैरह की चील्लाटी (बूम) करनेवाला खरतर है और इसीसे खरतरको समझाने के लिये शास्त्रकार उसीकी मानी हुई युक्तियोंसे उसको ही समझाते है, यह बात आपको मैं पहलेभी कह चुकाहूं. दूसरी बात यह है कि-आप जो कहते है कि भोग की गंधभी नहीं है, सोभी गलत बात ही है. मानो कि आसोज सुदी पूर्णिमाका क्षय है- और यहां तो त्रयोदशीका क्षय करना है तो प्रयोदशीके दिन चतुर्दशीका भोग अवश्यमेव होता ही है. जैसे कि शुक्रवारको त्रयोदशी घटी ६-३ पल है बादको चतुर्दशी आती है और शनिश्चरको चतुर्दशी घटी १-१४ पल है. बादमें पूर्णिमा ५६-३६ पल हैं इसके बादको प्रतिपदा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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